Published On Aug 21, 2021
रक्षाबंधन से जन्माष्टमी तक के कीर्तन
(कीर्तन प्रणालिका अनुसार)
1.सामरो मंगल रूप निधान (मंगला आरती पीछे)
2.आज वन कोऊ वह जिन जाय (श्रृंगार धराते समय)
3.जन्म फल मानत यशोदा माय (श्रृंगार धराते समय)
4.देखौ अदभुत अवगति की गति (श्रृंगार दर्शन)
5.शोभित कर नवनीत लिए (खेल दर्शन)
6.आनन्द की निधि नंदकुमार (राजभोग दर्शन)
7.नंदगृह बाजत आज बधाई (उत्थापन)
8.एक रीति प्रीति वश कीने मोहन (संध्यारती)
9.यह धन धर्म ही ते पायौ (शयन दर्शन)
10.धन्य रानी जसुमति गृह आवति गोपी-जन (पौढ़वे)
1.सामरो मंगल रूप निधान ॥
जा दिन तें हरि गोकुल प्रगटे दिन दिन होत कल्यान ||
बैठी रहौं श्याम गुन सुमरौं रैन दिना सब याम।।
श्रीभटके प्रभु नैन भर देखौं पीतांवर घनश्याम ||
2.आज वन कोऊ वह जिन जाय ॥
सब गायन बछरन समेत घर लावौ चित्र बनाय ||
ढोटा हो ब्रज भयौ रायजू कें कहत सुनाय सुनाय ||
चहुँ दिश घोष यही कोलाहल उर आनंद न समाय ॥
कितही विलंब करत बिन काजैं वेगि चलौ उठि धाय ॥ अपने अपने मनके चीते नैनन देखौ आय ||
एक फिरत दधि दूब देत है एक रहत गहि पाय |
एक वसन पट देत बधाई एक उठत हँसि गाय ॥
बाल विरध नर नारिन के मन भये चौगुने चाय ||
सूरदास प्रमुदित ब्रजवासी गिनत न राजा राय ||
3.जन्म फल मानत यशोदा माय ॥
जब नंदलाल धूर धूसर वपु रहत कंठ लपटाय ||
गोद बैठि गहि चिबुक मनोहर बातें कहत तुतराय ||
अति आनंद प्रेम पुलकित तन मुख चुंबत न अघाय ||
आरत चित्त विलोकि बदन विधु पुनिपुनि लेत बलाय ॥ परमानंद मोद छिन छिन को मोपै कह्यो न जाय ॥
4.देखौ अदभुत अवगति की गति कैसौ रूप धर्यौ है
तीन लोक जाके उदर बसत हैं सो सूप के कौने पर्यौ है
नारदादि ब्रह्मादिक जाकों सकल विश्व सर सांधें
ताकौ नार छेदत ब्रज युवती बाँटि तगा सों बाँधें
जा मुख कों सनकादिक लोचत सकल चातुरी ठानै
सोई मुख निरखत महरि जसोदा दूध लार लपटाने
जिन श्रवनन सुनी गज की आपदा गरुडासन बिसराये
तिन श्रवनन के निकट जसोदा गाये और हुलराये
जिन भुजान प्रहलाद उबारयौ हरनाकुस उर फारे
तेई भुज पकरि कहत ब्रजगोपी नाचौ नेंक पियारे
अखिल लोक जाकी आस करत है सो माखन देखि अरै है
सोई अदभुत गिरिवरहू ते भारे पलना माँझ परे हैं
सुरनर मुनि जाकौ ध्यान धरत हैं शम्भु समाधि न टारी
सोई प्रभु सूरदासकौ ठाकुर गोकुल गोप बिहारी।।
5.शोभित कर नवनीत लिये।
घुटुरुवन चलत रेनुं तन मंडित मुख दधि लेप किये।
चारु कपोल लोल लोचन छवि गोरोचन तिलक दिये।
लर लटकन मानो मत्त मधुपगन मादक मधुहि पिये।
कठुला कंठ बज्र के हरिनख राजत रुचिर हिये।
धन्य सूर एकौ पल य सुख कहा भयौ शत कल्प जिये।
6.आनंदकी निधि नंदकुमार।
प्रगट परिब्रह्म नट भेष नराकृत जगमोहन लीला अवतार ॥श्रवनन आनंद लोचन आनंद मनमें आनंद आनंद मूर्ति । गोकुल आनंद गायन आनंद नंद यशोदा आनंद पूर्ति ||
सब दिन आनंद धेनु चरावत बेनु बजावत आनंदकंद।
खेलत हँसत कुतूहल आनंद राधापति वृंदावनचंद ॥ शुकमुनि आनंद भक्तन निशदिन आनंद रासविलास।
चरनकमल अनुराग निरंतर अति आनन्द परमानंददास।।
7.नंदगृह बाजत आज बधाई |
नाचत गावत करत कुलाहल उर आनंद न समाई ॥
गोप सवें मिलि भेट बहुत लें आये अति अतुराई ||
सूरदास महर मनहि मन फूले अंग न माई ||
8.एक रीति प्रीति बस कीने मोहन याही ते ब्रज रीति न्यारी।
जाकी माया सब जगत नचावत ताहि नचावत घोष की नारी।
जाकी चरनरज ब्रह्मादिक दुर्लभ सो रज ब्रजवधून वन बगर बुहार डारी।
सूरदास मदनमोहन जिनके हरि नैन प्रान कहा कहूँ बुद्धि अनुसारी।।
9.यह धन धर्म ही ते पायौ
नीके राखि यशोदा मैया नारायन ब्रज आयौ
जा धन कौ मुनि जप तप खोजत वेदहु पार न पायौ
सो धन धर्यौ क्षीरसागर में ब्रह्मा जाय जगायौ
जा धन ते गोकुल सुख लहियत सगरे काज सँवारे
सो धन बार बार उर अंतर परमानन्द विचारै।।
10.धन्य रानी जसुमति गृह आवति गोपी-जन
बासर ताप निवारन कारन, बारंबार कमल मुख निरखन।।चाहत पकरि देहरी उलंघन किलकि-किलकि हुलसत मन ही मन।
राई लॉन उतारि दुहौं कर वारि फेरि डारत तन मन धन 11 लाल लेत उछंग चॉपति हियौ भरि, प्रेम बिबस लागे दृग ढरकन।
लै चली पलना पौढावनि कों अरकसाय पौढे सुंदर घन।। देति असीस सकल गोपी-जन, चिरजीयो ज्यौं लौं गंग जमुन।
'परमानंददास कौ ठाकुर भक्त वत्सल भक्तन मन-रंजन।।
डॉ भगवान दास कीर्तनकार, कामवन
(अष्टसखा श्रीगोविंददासजी के वंशज)
मोबाइल नं.9828737151
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