Kalabhairawsashtak stotra | कालभैरवाष्टक स्तोत्र | mahashivaratri
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 Published On Premiered Mar 7, 2024

कालभैरवाष्टक स्तोत्र

कालभैरव अष्टकम्देवराज सेव्यमान पावनाङ्घ्रि पङ्कजम्
व्यालयज्ञ सूत्रमिन्दु शेखरं कृपाकरम् 
नारदादि योगिवृन्द वन्दितं दिगंबरम्
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥ १॥ 

भानुकोटि भास्वरं भवाब्धितारकं परम्
नीलकण्ठम् ईप्सितार्थ दायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालम् अंबुजाक्षम् अक्षशूलम् अक्षरम्
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥२॥ 

शूलटङ्क पाशदण्ड पाणिमादि कारणम्
श्यामकायम् आदिदेवम् अक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियम्
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥३॥ 

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहम्
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन् मनोज्ञहेमकिङ्किणी लसत्कटिम्
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥४॥ 

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकम्
कर्मपाश मोचकं सुशर्मदायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाश शोभिताङ्गमण्डलम्
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५॥ 

रत्नपादुका प्रभाभिराम पादयुग्मकम्
नित्यम् अद्वितीयम् इष्टदैवतं निरञ्जनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणम्
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥६॥ 

अट्टहास भिन्नपद्मजाण्डकोश सन्ततिम्
दृष्टिपातनष्टपाप जालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपाल मालिकन्धरम्
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥७॥ 

भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकम्
काशिवासलोक पुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिम्
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥८॥ 

फलश्रुति

कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरम्
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोक मोह दैन्य लोभ कोप ताप नाशनम्
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रि सन्निधिं ध्रुवम् ॥९॥ 

इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं कालभैरवाष्टकं संपूर्णम् ॥

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