गवरी पाबूजी राठोड़ का जबरदस्त तलवारबाजी एक्शन- भाग-2. गवरी खेल
Gorjiya Chenal Jawad Gorjiya Chenal Jawad
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 Published On Oct 5, 2018

लोक देवता पाबूजी वीरता, गो-रक्षा, शरणागत- वत्सलता और नारी सम्मान जैसे महान् गुणों के कारण जन-जन की श्रद्धा एवं आस्था का केन्द्र हैं. पाबूजी मात्र वीर योद्धा ही नहीं वरन् अछूतोद्वारक भी थे. उन्होंने अस्पृष्य समझी जाने वाली थोरी जाति के सात भाइयों को न केवल शरण ही दी अपितु प्रधान सरदारों में स्थान देकर उठने-बैठने और खाने-पीने में अपने साथ रखा.
लोकदेवता पाबूजी अपने वचन की पालना और गोरक्षा हेतु बलिदान हो गये. राजस्थान के लोक जीवन में ऊंटों के देवता के रूप में भी इनकी पूजा होती है. माना जाता है कि इनकी मनौती करने पर ऊंटों की रुग्णता दूर हो जाती है.
उनके स्वस्थ्य होने पर भोपे-भोपियों द्वारा ’पाबूजी की फड़’ गाई जाती है. लोकदेवता के रूप में पूज्य पाबूजी का मुख्य स्थान कोलू (फलौदी) में है. जहां प्रतिवर्ष इनकी स्मृति में मेला लगता है. इनका प्रतीकचिन्ह हाथ में भाला लिए अश्वारोही पाबूजी के रूप में प्रचलित है. भील जाति के लोग पाबूजी को इष्ट देवता के रूप में पूजते हैं.
पड़वाले भील एक कपड़े पर पाबूजी के कई लीलाओं के चित्र बनाए रखते हैं. फिर उस चित्रमय लम्बे कपड़े को प्रदर्शित कर उसके आगे भील व भीलनी रातभर पाबूजी का गुणगान गा-गाकर नाचते हैं. वह चित्रमय कपड़ा ‘पाबूजी की फड़’ कहलाता है. यह लोक गाथा के रूप में राजस्थान में प्रसिद्ध है. धांधल राठौड़ों के अलावा थोरी भी उनके प्रमुख अनुयायी हैं, जो पाबूजी की पड़ गाने के अलावा सांरगी पर उनका यश भी गाते हैं.

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