CGMH6 | रायपुर की कल्चुरी शाखा (लहुरी शाखा)| Kalchuri Dynasty (Lahuri Branch) CG Medieval History
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 Published On Premiered Oct 8, 2024

रायपुर के कलचुरी वंश (लहुरी शाखा)रतनपुर की कलचुरियों की एक शाखा खल्लारी में 14 वीं शताब्दी में लक्ष्मीदेव के शासन काल में स्थापित हुई थी, हालाँकि समय के साथ रायपुर राजधानी बन गई इसलिए इस शाखा को रायपुर शाखा के रूप में जाना जाता है |साक्ष्य -शिलालेख – राजा ब्रम्हदेव राय के खल्लारी और रायपुर से |रायपुर से शिलालेख से हमें कलचुरियों की वंशावली मिलती है, जो लक्ष्मीदेव से शुरू होता है |राजधानी – खल्लारी, रायपुर |प्रमुख शासकलक्ष्मीदेव (1300 – 1340 ई.)हरिब्रम्हदेव राय के दो शिलालेख – रायपुर (विक्रम संवत 1458 या 1402 ई.) तथा खल्लारी (विक्रम संवत 1471 या 1414 ई. ) में प्राप्त हुयें हैं | हरिब्रम्हदेव राय के शिलालेख से ज्ञात होता है की लक्ष्मीदेव रतनपुर के कलचुरी राजा का सम्बन्धी था |वह पहले रतनपुर के राजा प्रतिनिधि के रूप में खल्लारी में शासन करता था किन्तु कालांतर में इनके मध्य मतभेद होनें के कारण रायपुर के कलचुरी, रतनपुर के कल्चुरिओं से स्वतंत्र हो गये |सिंघणदेव (1340 – 1380 ई.)सिंघणदेव, लक्ष्मीदेव का पुत्र था | सिंघणदेव अत्यधिक प्रतापी राजा था |उसने अपनें शत्रुओं को पराजित कर रायपुर राज्य के पुरे 18 गढ़ जित लिए थे |रामचन्द्र देव (1380 – 1400 ई.)रामचन्द्र का नाम रायपुर शिलालेख में रामचंद्र एवं खल्लारी शिलालेख में रामदेव उल्लेखित है |रामचंद्र नें रायपुर शहर की स्थापना की तथा रायपुर का नामकर अपनें पुत्र हरिब्रह्मदेव राय के नाम पर रखा | खल्लारी शिलालेख के अनुसार रामचंद्र नें नागवंशी शासक मोहिमदेव को पराजित किया था |हरिब्रम्हदेव राय (1400 – 1420 ई.)हरिब्रम्हदेव राय के शासन काल के पूर्व खाल्ल्वाटिका (खल्लारी) तथा इसके शासन के समय रायपुर के राजधानी के रूप में उल्लेख मिलता है |अतः हरिब्रम्हदेव राय नें 1409 ई. में अपनी राजधानी खल्लारी से रायपुर स्थानान्तरीत किया था |उसके शासनकाल में रायपुर में बूढ़ा तालाब और दूधाधारी मठ का निर्माण हुआ था |रायपुर शिलालेख (1402 ई. ) से ज्ञात होता है की हजिराज नामक व्यक्ति नें रायपुर में हट्टकेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कराया था तथा खल्लारी शिलालेख के अनुसार 1415 ई. में देवपाल नामक मोची नें खल्लारी महासमुंद में नारायण मंदिर (विष्णु मंदिर ) का निर्माण करवाया था |केशवदेव (1420 – 1438 ई.)हरिब्रम्हदेव के बाद रायपुर शाखा का शासक केशवदेव बना और खल्लारी शिलालेख के अनुसार हरिब्रम्हदेव नें अपनी राजधानी खल्लारी स्थानान्तरीत कर दी और इस शिलालेख में खल्लारी को ही उसकी मुख्य राजधानी बताया गया है | कनिंघम की रिपोर्ट के अनुसार केशवदेव रायपुर में लहरी शाखा का संस्थापक था | इसमें केशवदेव से लेकर अमरसिंह देव तक कुल 18 राजाओं की सूचि मिलती है |अमरसिंह देव (1741 – 1753 )अमरसिंह एक अच्छे कवी थे |उनके दरबार में गोपाल मिश्र के पुत्र पिंगलाचार्य कवी माखन राज्यश्रीत थे |यह रायपुर के कलचुरी वंश का अंतिम शासक था |अमरसिंह देव का ताम्रपत्र विक्रम संवत 1792 अर्थात 1735 ई. को प्राप्त हुआ है |जिसके अनुसार सन 1750 ई. में मराठों नें बिना किसी विरोध के अमरसिंह से उनका राज्य छिनकर रायपुर, राजिम तथा पाटन का क्षेत्र उसे दे दिया और उसके बदले अमरसिंह को 7000 रुपये टकोली प्रतिवर्ष मराठों को देना था |सन 1753 ई. में अमरसिंह की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र शिवराज सिंह बचे हुए क्षेत्र का उत्तराधिकारी घोषित किया गया, किन्तु अमरसिंह के मृत्यु के समय शिवराज सिंह तीर्थयात्रा पर गया हुआ था, उसके वापस लौटने से पहले ही मराठों ने बचे हुए क्षेत्र को भी जब्त कर लिया | इसके पश्चात् में 1757 ई. में बिम्बजी भोंसलें ने इस क्षेत्र में अपना प्रत्यक्ष शासन स्थापित किया |बिम्बाजी नें शिवराज सिंह को बढ़गांव क्षेत्र (महासमुंद) माफ़ी के तौर पर दे दिया तथा उसके जीवन निर्वाह के लिये उसे उस क्षेत्र के प्रत्येक गाँव से एक-एक रुपये वसूल करनें का अधिकार दिया |यह व्यवस्था 1822 ई. तक चली |1822 ई. के बाद शिवाराज के पुत्र रघुनाथ सिंह को उसके जीवन निर्वाह के लिए मराठों द्वारा मुरेना, नंदगाँव और भालेसर गाँव दे दिया गया था |इस प्रकार कलचुरी वश के शासकों नें छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक लम्बे समय तक शासन किया और 750 वर्षों तक शासन करनें के पश्चात् छत्तीसगढ़ में हैहयवंशियों की रतनपुर तथा रायपुर शाखा का पतन हो गया और छत्तीसगढ़ में मराठों का शासन स्थापित हो हुआ |

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