Sampoorn Ramleela | परशुराम लक्ष्मण का ऐसा संवाद जो कभी देखा न होगा
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 Published On Oct 14, 2024

भगवान परशुराम विष्णु के दशावतारों में से छठे अवतार माने जाते हैं। परशुराम का जन्म अत्यंत धार्मिक और वीर कुल में हुआ था। उनके पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। परशुराम का असली नाम "राम" था, लेकिन उनके पास भगवान शिव द्वारा प्रदत्त परशु (कुल्हाड़ी) होने के कारण उन्हें "परशुराम" कहा जाने लगा।

परशुराम की जीवनी:
1. जन्म और प्रारंभिक जीवन:
परशुराम का जन्म सप्तऋषि वंश के भृगु कुल में हुआ था। उनके पिता जमदग्नि एक महान ऋषि थे और माता रेणुका सती और तपस्विनी थीं। परशुराम बचपन से ही बहुत वीर और पराक्रमी थे। उनके पिता ने उन्हें वेदों और शास्त्रों की शिक्षा दी, और भगवान शिव ने उन्हें अस्त्र-शस्त्रों की विद्या सिखाई। शिवजी ने उन्हें एक शक्तिशाली परशु (कुल्हाड़ी) प्रदान किया, जिसके कारण उनका नाम परशुराम पड़ा।
2. परशुराम का क्रोध और क्षत्रियों का संहार:
परशुराम के पिता, ऋषि जमदग्नि, अत्यंत ज्ञानी और तपस्वी थे। वे राजा कार्तवीर्य अर्जुन द्वारा किए गए अन्याय का शिकार हुए। राजा ने उनकी गाय "कामधेनु" को बलपूर्वक छीन लिया, जिसके बाद परशुराम ने क्रोध में आकर राजा को मार डाला। इस घटना से क्षत्रियों में क्रोध फैल गया और उन्होंने परशुराम के पिता को मार डाला। पिता की हत्या का बदला लेने के लिए परशुराम ने संकल्प लिया कि वे पृथ्वी से अन्यायपूर्ण क्षत्रियों का संहार करेंगे। उन्होंने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रियों से मुक्त किया।
3. शिक्षा और भगवान शिव से वरदान:
परशुराम ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और उन्हें प्रसन्न किया। शिवजी ने उन्हें वरदान स्वरूप अद्वितीय युद्ध कौशल और अमोघ शस्त्र प्रदान किए। परशुराम को भगवान शिव से शिव धनुष और परशु (कुल्हाड़ी) का आशीर्वाद मिला, जो उनकी पहचान का प्रतीक बन गया।
4. तपस्या और धरती से जाने का कारण:
परशुराम ने क्षत्रियों का संहार करने के बाद पृथ्वी से संन्यास लेने का निर्णय लिया। वे धरती से तपस्या करने के लिए महेंद्र पर्वत चले गए। यह पर्वत उनके ध्यान और साधना का प्रमुख स्थान बन गया। परशुराम धरती पर इसलिए नहीं रहते थे क्योंकि वे क्षत्रियों के खात्मे के बाद तपस्वी जीवन जीने के लिए प्रतिबद्ध हो गए थे और पृथ्वी के अन्य संघर्षों से खुद को दूर रखना चाहते थे।
5. अमरता का वरदान:
परशुराम को अमरता का वरदान प्राप्त था, इसलिए वे चिरंजीवी हैं। उन्होंने क्षत्रियों के संहार के बाद धरती से तपस्वी जीवन अपनाया और अपने शेष जीवन में तपस्या की।

6. महेंद्र पर्वत पर तपस्या:
परशुराम महेंद्र पर्वत पर तपस्या करने चले गए और वहीं से उन्होंने जीवन का अधिकांश समय तप में बिताया। महेंद्र पर्वत को ही उनका निवास स्थान माना जाता है। वे समय-समय पर विभिन्न घटनाओं में हस्तक्षेप करते हैं, जैसे कि रामायण और महाभारत के काल में, लेकिन ज्यादातर वे तपस्वी जीवन जीते हैं।

7. अपनी माता का गला काट दिया:
परशुराम ने अपनी माता रेणुका का गला काटने की घटना का उल्लेख उनके जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में होता है। यह कथा ऋषि जमदग्नि और उनकी पत्नी रेणुका से जुड़ी है, जो परशुराम के माता-पिता थे।
ऋषि जमदग्नि एक महान तपस्वी और ज्ञानी थे। उनकी पत्नी रेणुका भी बहुत पवित्र और पतिव्रता थीं। एक दिन, रेणुका सुबह-सुबह नदी में स्नान करने गईं। उन्हें अपने दैनिक कर्तव्य के अनुसार उस समय पानी से मिट्टी का घड़ा बनाकर लाना था। जब वह नदी के किनारे थीं, तब उन्होंने वहां एक गंधर्वराज को देखा, जो अपनी पत्नी के साथ जलक्रीड़ा कर रहे थे। गंधर्व के प्रति आकर्षित होकर रेणुका एक पल के लिए मोहवश उनकी ओर देखने लगीं, जिससे उनकी तपस्या और ध्यान भंग हो गया। इस कारण वह पानी से मिट्टी का घड़ा नहीं बना सकीं, जो वह हर दिन करती थीं।

जब रेणुका बिना घड़े के वापस ऋषि जमदग्नि के आश्रम आईं, तो उन्होंने उनकी इस चूक को देख लिया। ऋषि जमदग्नि तपस्वी और क्रोधी स्वभाव के थे। उन्होंने रेणुका के इस मोह को एक पाप माना और अपने सभी पुत्रों को आदेश दिया कि वे अपनी माता का सिर काट दें।

परशुराम की आज्ञा पालन:
परशुराम के सभी भाइयों ने पिता की आज्ञा का पालन करने से इनकार कर दिया, लेकिन परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया और बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी माता का गला काट दिया। उन्होंने इसे अपने धर्म और पिता के प्रति कर्तव्य समझा।

ऋषि जमदग्नि का आशीर्वाद:
परशुराम की इस आज्ञा पालन से ऋषि जमदग्नि अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने परशुराम को वरदान देने का प्रस्ताव रखा। परशुराम ने अपने पिता से अपनी माता को पुनर्जीवित करने का आशीर्वाद मांगा। ऋषि जमदग्नि ने उनकी यह इच्छा पूरी की और माता रेणुका को पुनः जीवित कर दिया।
8. परशुराम कुंड: अरुणाचल प्रदेश में स्थित एक पवित्र स्थल, जहां परशुराम ने अपने पापों का प्रायश्चित किया था।
9. अन्य प्रमुख घटनाएं:
रामायण में भूमिका: परशुराम का उल्लेख रामायण में भी आता है, जब भगवान राम ने शिव धनुष को तोड़ दिया था। यह सुनकर परशुराम क्रोध में स्वयंवर में आए और राम से भिड़ने की इच्छा प्रकट की। लेकिन जब उन्हें राम के विष्णु अवतार का ज्ञान हुआ, तो उन्होंने उन्हें प्रणाम किया और वापस चले गए।

महाभारत में भूमिका: महाभारत काल में परशुराम कर्ण के गुरु बने, जिन्होंने उन्हें युद्ध कला सिखाई। जब कर्ण की पहचान छिपी हुई थी और वह सूतपुत्र के रूप में गुरु दक्षिणा प्राप्त कर रहा था, तब परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया था कि जब वह अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण युद्ध में होगा, तब उसे अपने सीखे हुए अस्त्र-शस्त्रों की याद नहीं आएगी।
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