Chamar rajao ke rajmahal aaj bhi he || विश्व की सबसे बड़ी चमार संस्कृति बहुत बड़ी संस्कृति है ,
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 Published On May 19, 2020

चमरदल महल तवानगर
होशंगाबाद जिले के इटारसी तहसील रेल्वे जंक्शन से 40 किलोमीटर दूर सतपुडा के जंगलो के बीच रानीपुर तवानगर जहाँ तवा डैम तवा नदी पर बना हुआ हे उसके समीप मैन केनाल हरदा -इटारसी की और जाती है । तवा नदी के किनारे में वही करीब 5 एकड वन भूमि मे चमरदल महल था व सैंकड़ों एकड जमीन महल व चमाराज्य के अधीन थी । तवा डैम के निर्माण में व नहर के निर्माण में चमरदल महल की जमीन उपयोग में ली गयी है । महल आज पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते क्षत विक्षत हो चुका है ।
महल के समीप पानी के कुंड व बाबडी, है जो लगभग 50 फिट गहरी थी अब विलुप्त हो रही है बाबडी के समीप अंदर स्नान कुंड था जहाँ रानी व स्नान किया करती थी उसी कुंड से एक गुप्त रास्ता था जो की तवानदी को पार करके उस पार जाता था नदी के उसपार भी महल व चमाराज्य के अन्य भवन बने हुये है अव जिनके अवशेष बचे है । मुख्यमहल के पास अस्तबल ,कैदीगृह व अन्य छोटे छोटे महल थे जिनमें राज्य के सैनिक व अन्य लोग निवास करते थे वह भी विलुप्त की कगार पर है । चमार राजा ने यहाँ राज्य किया था 300 से 400 वर्ष पहले राजा ने अपने राज्य मे चमडे के नोट व सिक्के चलाये थे जो राज्य क्षैत्र था उसे चौबीसा कहते थे जिनके अंतगर्त सनखेडा सोमलवाडा घाटली गुर्रा सिलारी से सोनतलाई बिछुआ मरोडा के बीच के लगभग 24 गाँव थे इसलिऐ इसे चौबीसा कहते थे । इतिहास मे पता चलता है कि रानी के पास पारसमणी पत्थर था यदि वह पत्थर लोहे को छू ले तो पारस बन जाता था तो राजा उस समय लगान के रूप मे किसानो से उनके हसिये दाँतरा लिया करते थे व उसे पारसमणी पत्थर से छूकर पारस बनाते थे जब ये जानकारी उस समय के लुटेरो को लगी तो उन्होने राज्य पर हमला कर राजा की हत्या कर दी रानी ने अपनी जान बचाने के लिऐ पारसमणी पत्थर लेकर नदी मे छलांग लगा दी लेकिन रानी का कभी पता नही लगा शायद डूब कर मौत हो गयी लुटेरे ने जिस जगह रानी नदी मे कूदी थी उस जगह पानी बहुत गहरा था और आज भी बहुत गहरा है बुर्जग बताते है गहराई इतनी जितनी एक खाट मे रस्सी बुनते है उसके बीस गुना पारस मणी ढूंढने के लिऐ नदी मे लोहे की बढी बढी सांकल नदी मे हाथी के पैरो मे बांधकर खिंचवायी पर उन्हे कुछ हासिल नही हुया। इस प्रकार की जानकारी समाज के बुजर्गो ने दी । हम सभी रविदास वंश के लोगो को अपने राजा और राज्य की जगह को सरकार से मांग कर संत रविदास जी की प्रतिमा स्थापितकर समाज के लिऐ तीर्थस्थल के रूप मे मानना चाहिऐ क्योकि यहाँ अपना इतिहास जुडा हे यह जगह अभी वन भूमि मे!
यह पोस्ट हमारे मित्र अजय हरिवाल जी के आग्रह पर पोस्ट किया है धन्यवाद।

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