सबूत के भार || Burden of Proof || भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 || धारा 101 से 102 तक ||
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 Published On May 2, 2024

सबूत का भार || Burden of Proof || भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 || धारा 101 से 102 तक || #thelegal
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भाग-3

साक्ष्य का पेश ‌किया जाना और प्रभाव
अध्याय- 7
सबूत के भार (Burden of Proof) के विषय में

प्रश्न- सबूत के भार (Burden of Proof) से आप क्या समझते है सबूत का भार (Burden of Proof) एक पक्षकार से दूसरे पक्षकार पर कब चला जाता है।

उत्तर- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा- 101 और धारा- 102 दोनों सबूत के भार (Burden of Proof) से सम्बन्धित है। धारा- 101 निर्धारित करती है कि, जो पक्षकार न्यायालय से चाहता है कि, वह किसी अधिकार एवं दायित्व के बारे में उसके द्वारा कहे गए तथ्यों के आधार पर निर्णय दे तो उसका दायित्व होता है कि, वह उन तथ्यों का अस्तित्व सिद्ध करे।

उदाहरण- A न्यायालय से चाहता है कि, वह B को चोरी के अपराध के लिए दण्डित करे जिसके बारे में A कहता है कि, B ने चोरी की है ऐसी स्थिति में A को यह साबित (Prove) करना होगा कि, B ने चोरी किया है।

धारा- 102 यह निर्धारित करती है कि, किसी वाद या कार्यवाही में सबूत का भार (Burden of Proof) उस व्यक्ति पर होता है जो असफल हो जायेगा यदि दोनों में से किसी भी ओर से साक्ष्य न दिया जाए।

साक्ष्य विधि में ‘सबूत का भार (Burden of Proof)’ शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया गया है इसका एक अर्थ होता है वाद को स्थापित करने का भार और दूसरा अर्थ होता है साक्ष्य प्रस्तुत करने का भार।

उदाहरण- यदि A प्रोनोट पर लिए गये रुपये के लिए B पर वाद लाता है और B कहता है कि, प्रोनोट तो उसने लिखा था परन्तु उसको धोखा दिया गया था और उसे रूपया नहीं दिया गया था अब यदि A अपने वाद में सफल होना चाहता है तो उसे अपने वाद के बारे में सभी तथ्य साबित (Prove) करना होगा कि, B ने प्रोनोट लिखा है उसने प्रोनोट में वर्णित धन B को दिया था B ने आज तक रूपया वापस नहीं किया अर्थात उसने अपना वाद स्थापित करना होगा यहां A पर पहले अर्थ में सबूत का भार (Burden of Proof) है।

दूसरे अर्थ में सबूत का भार (Burden of Proof) किस पर है अर्थात कौन पहले साक्ष्य प्रस्तुत करेगा B ने प्रोनोट का लिखना स्वीकार किया है परन्तु रुपये का पाना अस्वीकार करता है अतः पहले जैसे ही इस तथ्य पर साक्ष्य पेश करना पड़ेगा प्रोनोट लिखने के बावजूद उसे A से रुपया नहीं मिला था क्यों कि, यदि किसी ओर से कोई साक्ष्य न पेश किया जाए तो A अपने वाद में सफल हो जायेगा अत: B यदि सफल होना चाहता है तो वह पहले रूपया ना पाने के तथ्य पर साक्ष्य पेश करे।

पहले अर्थ में सबूत का भार (Burden of Proof) अथवा वाद स्थापित करने का भार सदैव उस व्यक्ति पर होता है जो न्यायालय से किसी अधिकार या दायित्व के बारे में निर्णय चाहता है। और पूरी कार्यवाही के दौरान यह भार उसी पर बना रहता है कभी दूसरे पक्षकार पर अन्तरित नहीं होता है परन्तु जहां तक साक्ष्य पेश करने का भार है वह बदलता रहता है वादी से प्रतिवादी पर और प्रतिवादी से वादी पर

निम्नलिखित तीन परिस्थितियों में सबूत का भार (Burden of Proof) एक पक्षकार से दूसरे पक्षकार पर अन्तरित हो जाता है:-
1. यदि किसी तथ्य के बारे में एक पक्षकार के पक्ष में उपधारणा की जाती है तो सबूत का भार (Burden of Proof) दूसरे पक्षकार पर चला जाता है
जैसे- यदि कोई व्यक्ति यह कहता है कि, अमुक व्यक्ति अभी जीवित है और यह साबित (Prove) कर देता है कि, पिछले 20 वर्षों में किसी दिन वह जीवित था तो यह उपधारणा कर ली जायेगी कि, वह अभी भी जीवित है और यह साबित (Prove) करने का भार कि, वह जीवित नहीं है उस पक्षकार पर चला जायेगा जो यह कहता है कि, वह व्यक्ति अभी जीवित नहीं है।

2. कोई तथ्य किसी व्यक्ति के विशिष्ठ ज्ञान में है तो उसे साबित (Prove) करने का भार उसी व्यक्ति पर चला जाता है जिसके ज्ञान में वह तथ्य है।

जैसे- यदि A पर यह आरोप है कि, वह बिना टिकट, रेल में यात्रा कर रहा था तो यह साबित (Prove) करने का भार कि, उस के पास टिकट था A पर होगा यधपि सामान्य नियम के अनुसार अभियोजन पक्ष (Prosecutors) को A का अपराध साबित (Prove) करना चाहिए।

3. यदि किसी तथ्य पर वाद के पक्षकार ने स्वीकृति (Admission) की है और दूसरा पक्षकार उसी स्वीकृति (Admission) को साबित (Prove) कर देता है तो यह साबित (Prove) करने का भार यह स्वीकृति (Admission) नहीं है स्वीकृति (Admission) करने वाले पक्षकार पर चला जाता है।

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