Partition Horrors,Partition Tragedy,Taqseem ka Almiya تقسیم کا المیہ
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 Published On Aug 19, 2024

विभाजन विभिषिका, तक़सीम का अल्मिया , تقسیم کا المیہ
PARTITION TRADEGY
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*नाटक: "विभाजन की विभीषिका"*

*पात्र:*
1. *बलवंत* - एक हिंदू युवक
2. *दानिश* - एक मुस्लिम युवक
3. *बलवंत का पिता*
4. *दानिश की मां*
5. *बलवंत की मां*
6. *पड़ोसी (शरणार्थी कैंप में)*

*दृश्य 1: लाहौर का मोहल्ला*

(मंच पर एक छोटा-सा मोहल्ला दिखाया गया है। बलवंत और दानिश दोनों एक-दूसरे के घर के पास रहते हैं। वे साथ खेलते हैं, बातें करते हैं।)

*बलवंत:* (हंसते हुए) दानिश, आज के मैच में तो तुम बिल्कुल हार गए!

*दानिश:* (मुस्कुराते हुए) हां, लेकिन अगली बार मैं तुम्हें हराऊंगा। तुम देखना!

(दोनों हंसते हैं और एक-दूसरे के कंधे पर हाथ रखकर चलते हैं। तभी दानिश की मां दरवाजे से आवाज लगाती है।)

*दानिश की मां:* दानिश, बेटा, अंदर आ जाओ। देर हो रही है।

*दानिश:* (बलवंत से) चलो, मैं चलता हूं। कल मिलते हैं।

*बलवंत:* ठीक है, कल मिलते हैं। (मंच से जाता है)

*दृश्य 2: विभाजन की घोषणा*

(मंच पर खबर सुनाई देती है कि भारत का विभाजन हो गया है। चारों ओर अफरा-तफरी का माहौल है। दंगे भड़क उठे हैं।)

*बलवंत का पिता:* (चिंतित) बलवंत, हमें यहां से तुरंत निकलना होगा। हालात बहुत खराब हो गए हैं। हम अमृतसर चले जाएंगे।

*बलवंत:* (आश्चर्यचकित) लेकिन, पिताजी, दानिश और उसका परिवार?

*बलवंत का पिता:* (गंभीरता से) बेटे, अब धर्म के नाम पर नफरत फैल चुकी है। हमें अपनी जान बचानी है।

(बलवंत असमंजस में है, लेकिन मजबूर होकर अपने परिवार के साथ निकलने की तैयारी करता है।)

*दृश्य 3: शरणार्थी कैंप*

(बलवंत का परिवार अमृतसर के एक शरणार्थी कैंप में पहुंचता है। सब लोग थके-मांदे और उदास हैं।)

*बलवंत की मां:* (आंसू पोंछते हुए) हमारा सब कुछ पीछे छूट गया। न जाने वहां क्या हाल हो रहा होगा।

*बलवंत:* (दानिश की चिंता करते हुए) मां, क्या दानिश और उसका परिवार भी सुरक्षित होगा?

*बलवंत का पिता:* (गंभीर स्वर में) इस समय किसी का कुछ पता नहीं है। लेकिन हमें अब यहां अपनी नई जिंदगी शुरू करनी होगी।

*दृश्य 4: दानिश का आगमन*

(कई दिनों बाद, दानिश और उसका परिवार भी उसी कैंप में आ जाता है। दानिश का चेहरा उतरा हुआ है। वह बलवंत को देखकर भावुक हो जाता है।)

*दानिश:* (गले लगते हुए) बलवंत, तुम यहां हो? मुझे लगा था कि मैं तुम्हें कभी नहीं देख पाऊंगा!

*बलवंत:* (गले लगाते हुए) दानिश, मैं भी यही सोच रहा था। इस विभाजन ने सब कुछ बर्बाद कर दिया है।

*दानिश:* (दुखी होकर) हमारे घर, हमारी ज़मीनें, सब कुछ छूट गया। अब हमें यहां से नई शुरुआत करनी होगी।

*बलवंत:* (संकल्प के साथ) हम मिलकर इस त्रासदी का सामना करेंगे। हमारी दोस्ती को कोई तोड़ नहीं सकता।

*दृश्य 5: नई शुरुआत*

(बलवंत और दानिश अपने-अपने परिवारों को संभालने में जुट जाते हैं। दोनों एक-दूसरे का सहारा बनते हैं। धीरे-धीरे समय के साथ, वे अपने दर्द को भुलाकर आगे बढ़ते हैं।)

*बलवंत का पिता:* (दानिश के परिवार की मदद करते हुए) अब हम सब एक हैं। धर्म की दीवारों को हम अपने दिलों में जगह नहीं देंगे।

*दानिश की मां:* (बलवंत के परिवार के लिए खाना बनाते हुए) हां, यह वक्त हमें एक साथ बांधने का है, न कि अलग करने का।

*अंतिम दृश्य:*

(मंच पर बलवंत और दानिश एक पेड़ के नीचे बैठे हैं, जहां वे पहले खेला करते थे। दोनों एक-दूसरे की तरफ देखते हैं और मुस्कुराते हैं।)

*बलवंत:* (हाथ मिलाते हुए) दानिश, यह विभाजन हमें बांट नहीं सकता। हम हमेशा साथ रहेंगे।

*दानिश:* (हाथ मिलाते हुए) बिल्कुल, बलवंत। हम दोनों इस नफरत की दीवार को मिलकर गिराएंगे।

(मंच पर धीमी रोशनी होती है और दोनों दोस्तों के चेहरे पर उम्मीद की किरण दिखती है। नाटक का अंत इस संदेश के साथ होता है कि सच्ची दोस्ती और मानवता किसी भी विभाजन से बड़ी होती है।)

*समाप्त*

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