l स्वधा देवी स्तोत्रम् l श्रीमद् देवी भागवतम् नवम स्कंद अध्याय ४४
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 Published On Sep 6, 2024

ll स्वधा देवी स्तोत्रम् ll


यह स्तोत्र श्रीमद् देवी भागवत इस ग्रंथ मे नवमस्कंद मे ४४ क्रमांक के अध्याय मे आया है l
देवताओं के लिये हव्य प्रदान करते समय स्वाहा और पितरों को कव्य प्रदान करते समय स्वधा ऐसा उच्चारण श्रेष्ठ माना है l यह स्वधा देवी की उत्पत्ती ब्रम्हाजी के सभा मे ब्रम्हाजीने इस मानसी कन्या का सुरजन किया
शरद ऋतू मे अश्विन मास के कृष्णपक्ष मे त्रयोदशी तिथी को मघा नक्षत्र में अथवा कोई भी श्राद्ध के दिन यत्न पूर्वक देवी स्वधा की विधिवत पूजा करके बादमे श्राद्ध करना चाहिए l यदि कोई मानव स्वधा का पूजन के बिना कोई मानव अपने पितरोंका श्राद्ध करता है, वह श्राद्ध तर्पण का फल प्राप्त नही करता यह सत्य है l हे देवी स्वधा आप पितरोंके लिये प्राणतुल्य और विप्रगणों के लिए जीवन स्वरूपिणी है,आप श्राद्ध की अधिष्ठात्री देवी होती है, श्राद्ध का फल प्रदान करने वाली होती है,
फलश्रुती-- स्वधा शब्द का उच्चारण करने मात्र से मनुष्य तीर्थ स्नाई हो जाता है l याने सभी तीर्थ मे स्नान करने का फल प्राप्त हो सकता है l वह मानव सभी पापों से मुक्त हो जाता है, तथा वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त कर लेता है, यदि मानव स्वधा,
स्वधा,स्वधा, इस प्रकार तीन बार स्मरण कर लेता है तो वह मानव श्राद्ध तर्पण का फल प्राप्त कर लेता है l जो मानव श्राद्ध के अवसर पर सावधान होकर स्वधास्तोत्र का श्रवण करता है वह श्राद्ध से होनेवाला संपूर्ण फल प्राप्त कर लेता है इसमे संदेह नही है l जो मानव त्रिकाल संध्या के समय
स्वधा,स्वधा,स्वधा, ऐसा उच्चारण करता है उसे पुत्र तथा सद्गुण संपन्न विनम्र प्रिय तथा पतिव्रता स्त्री प्राप्त हो सकती है l
वेदमूर्ती मंदार खळदकर गुरुजी
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