जिस जिस से पथ पर स्नेह मिला उस उस राही को धन्यवाद | शिव मंगल सिंह सुमन | Saumya Rai
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 Published On Mar 25, 2024

जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,
उस-उस राही को धन्यवाद।

जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सीमित पग-डग, लम्बी मंज़िल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं।
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रमाद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,
उस-उस राही को धन्यवाद।

साँसों पर अवलम्बित काया, जब चलते-चलते चूर हुई,
दो स्नेह-शब्द मिल गए, मिली नव स्फूर्ति, थकावट दूर हुई।
पथ के पहचाने छूट गए, पर साथ-साथ चल रही याद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,
उस-उस राही को धन्यवाद।

जो साथ न मेरा दे पाए, उनसे कब सूनी हुई डगर?
मैं भी न चलूँ यदि तो भी क्या, राही मर लेकिन राह अमर।
इस पथ पर वे ही चलते हैं, जो चलने का पा गए स्वाद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,
उस-उस राही को धन्यवाद।

कैसे चल पाता यदि न मिला होता मुझको आकुल अन्तर?
कैसे चल पाता यदि मिलते, चिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर।
आभारी हूँ मैं उन सबका, दे गए व्यथा का जो प्रसाद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,
उस-उस राही को धन्यवाद।

~ शिवमंगल सिंह


“Gratitude is a divine emotion. It fills the heart, not to bursting; it warms it, but not to fever.” — Charlotte Bronte




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