पूज्यपाद महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज का यह प्रवचन महर्षि मेंहीं आश्रम कुप्पाघाट , भागलपुर में दिनांक 29/ 8/ 2004 ई ○ को हुआ था ।