वाल्मीकि जयंती विशेष कथा | रामायण कथा | Valmiki Jayanti Katha | 2023
Tilak Tilak
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 Published On Premiered Oct 27, 2023

महर्षि वाल्मीकि ऐसे पात्र पर ग्रन्थ लिखना चाहते हैं जिसकी गाथा इतिहास की रचना करती हो और उसके चरित्र से मानव शिक्षा ले। भगवान ब्रह्मा के आदेश पर नारद मुनि धरती पर महर्षि वाल्मीकि से भेंट करते हैं और उनसे राम कथा लिखने को कहते हैं। वह यह भी कहते हैं कि निकट भविष्य में राम के जीवन की एक घटना में आपको भी महती भूमिका निर्वाह करनी है। संध्याकाल महर्षि वाल्मीकि तमसा नदी में स्नान करने जाते हैं। वहाँ हंस-हंसिनी का एक जोड़ा रति क्रीड़ारत होता है। तभी एक शिकारी छिपकर बाण चलाता है और हंस को मार डालता है। हंसिनी भी अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए पति वियोग में प्राण त्याग देती है। वाल्मीकि यह दृश्य देखकर बहुत क्रोधित होते हैं और शिकारी को श्राप देते हैं। इसके बाद वाल्मीकि को अहसास होता है कि उनकी जिह्वा से जो श्राप निकला है, वह सृष्टि का पहला काव्य छन्द है। उसी समय ब्रह्माजी प्रकट होकर वाल्मीकि की बात की पुष्टि करते हैं और कहते हैं कि कवि का हृदय करुणा से भरा होना चाहिये, इसलिये आपके सामने हंस-हंसिनी यह करुण दृश्य उत्पन्न कराया गया था। ब्रह्मा वाल्मीकि से कहते हैं कि आप जगत को त्याग और बलिदान का सन्देश देने के लिये रामायण की रचना करें। जब तक धरती रहेगी, यह महाकाव्य किसी न किसी रूप में गाया जाता रहेगा। अगली प्रातः महर्षि वाल्मीकि अपने आश्रम में सरस्वती वन्दना के साथ रामायण की रचना प्रारम्भ करते हैं। उधर अयोध्या का राजा बनने के बाद राम के जीवन में एक और बड़ी घटना घटती है और उन्हें लोकापवाद से बचने के लिये सीता का परित्याग करना पड़ता है। सीता को गंगा किनारे महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में आश्रय मिलता है जहाँ सभी उन्हें वनदेवी पुकारते हैं। सीता सदैव गुमसुम सी रहती हैं। त्रिकालदर्शी महर्षि वाल्मीकि सीता की दशा यह देखकर परेशान होते हैं कि ऐसे में विधि का विधान कैसे आगे बढ़ेगा। अन्ततः एक रात्रि गुमसुम बैठी सीता को महर्षि वाल्मीकि मृदु स्वर में समझाते हैं कि तुमने एक लक्ष्य लेकर पति का त्याग किया था और संकल्प लिया था कि तुम अपनी सन्तान को वीर और प्रतापी बनाओगी। यदि तुम सदा उदास रहोगी तो तुम्हारे गर्भस्थ शिशु पर अच्छे संस्कार कैसे पड़ेंगे। महर्षि की बात से सीता को अपने कर्तव्य पथ का भान होता है। कुछ समय बाद श्रीराम अपने अनुज शत्रुघ्न को सेना के साथ अत्याचारी राक्षसराज लवणासुर का अन्त करने के लिये भेजते हैं। शत्रुघ्न मार्ग में वाल्मीकि आश्रम के निकट रात्रि पड़ाव डालते हैं। उसी रात सीता जुड़वा बालकों को जन्म देती हैं। वाल्मीकि शत्रुघ्न के हाथों दोनों बालकों का जातक संस्कार सम्पन्न कराते हैं किन्तु उनकी पहचान गुप्त रखते हैं। महर्षि वाल्मीकि सीता से कहते हैं कि बालकों के जन्म के समय अयोध्या की सेना द्वारा भेरी बजाना, सूर्यवंश की पताकाएं फहराना और शत्रुघ्न द्वारा उन्हें राजचिन्ह अंकित मालाएं पहनाना उनके भावी राजा बनने का शुभ संकेत है। त्रिकालदर्शी महर्षि वाल्मीकि लवकुश की कुण्डली बनाते हैं। वाल्मीकि दोनों बच्चों की ललाट रेखा भी पढ़ लेते हैं किन्तु सीता से कहते हैं कि वह लवकुश के जीवन की हर भावी घटना को लिख चुके हैं लेकिन इन्हें समय पर प्रकट होना चाहिये अन्यथा मनुष्य जीवन में आने वाले संकटों से लड़ने का साहस खो देगा। लव कुश महर्षि वाल्मीकि की देखरेख में बड़े हो रहे हैं। सीता भी उनमें अच्छे संस्कार डालती हैं। वाल्मीकि लवकुश को मानसिक और शारीरिक रूप से शक्तिशाली बनाना चाहते हैं। इसके लिये उन्हें शिलाजीत व अन्य औषधियों की आवश्यकता है। वह इन्हें प्राप्त करने के लिये अपने शिष्य सत्यमित्र को हिमालय पर्वत पर भेजते हैं। बहुत छोटी आयु में ही माता सीता बालकों के हाथों में धनुष थमा देती हैं। स्वयं महर्षि वाल्मीकि उन्हें धनुर्विद्या का अभ्यास कराते हैं व वायु की गति से बाण चलाने में भी निपुण बनाते हैं और साथ ही संगीत की शिक्षा भी देते हैं। लव कुश के कुछ बड़े होने पर वाल्मीकि उन्हें योग का ज्ञान देते हैं और अपने स्पर्श मात्र से उनकी कुण्डलिनी जागृत कर देते हैं। उधर अयोध्या में श्रीराम अश्वमेघ यज्ञ कराते हैं। एक दिन वाल्मीकि सीता और लवकुश को लेकर वहाँ पहुँचते हैं। उन्हें देखकर पूरे राजसभा में सुखद आश्चर्य की लहर दौड़ जाती है। किन्तु राम तो राजधर्म पालक और मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। वह भरी राजसभा में सीता की पवित्रता और लवकुश से उनके पुत्र होने का प्रमाण चाहते हैं। इस पर वाल्मीकि कहते हैं कि लवकुश आपके ही पुत्र हैं और यदि सीता में कोई दोष हो तो मेरी वर्षों की तपस्या निष्फल हो जाये। वाल्मीकि कहते हैं कि अपने तपोबल से सीता के सतीत्व की जाँच करने के उपरान्त ही मैंने उन्हें अपने आश्रम में प्रवेश दिया था। वाल्मीकि राम से सीता को राजसिंहासन में स्थान देने की संस्तुति करते हैं। किन्तु राम मौन रहते हैं।

|| जय श्रीराम ||

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