कोणार्क सूर्य मंदिर के 10 रहस्य जो आप नहीं जानते
Bhakti ki Shakti Bhakti ki Shakti
804 subscribers
40,778 views
475

 Published On Apr 30, 2023

भारत में कोणार्क सूर्य मंदिर यह एक ऐसा रहस्यमय मंदिर है, जहा आज तक कभी पूजा नही हुई, 13 वी शताब्दी का यह कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के ओडिसा राज्य में स्थित है। यह मंदिर भारतीय मंदिरों की कलिंग शैली का है, जो भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक मंदिर है।

कोणार्क सूर्य मंदिर को सन 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। तो दोस्तों इस आर्टिकल में Konark Sun Temple के बारे में कुछ रहस्य, इतिहास और कुछ रोचक बातें जानेंगे।


कोणार्क सूर्य मंदिर की स्थापत्य कला

कोणार्क सूर्य मंदिर यह भारत में उड़ीसा राज्य के पुरी जिले के अंतर्गत स्थित है। 13 वी शताब्दी के कोणार्क मंदिर का कोणार्क यह शब्द 'कोण' और 'अर्क' यह दो शब्दों से बना है। अर्क का अर्थ है सूर्य और कोण का अर्थ रहा होगा किनारा।

ऐसा माना जाता है की, यह मंदिर काल 1236-1264 ई.पू. में गंगा साम्राज्य के राजा नरसिंह देव के द्वारा बनाया गया है। कोणार्क सूर्य-मन्दिर लाल रंग के बलुआ पत्थरों और काले ग्रेनाइट के पत्थरों से बना हुआ और भारत का सबसे प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है।

कलिंग शैली में इस सूर्य मंदिर को भगवान सूर्य देव के रथ के आकार में बनाया गया है, जिसमे एक जैसे पत्थर के 24 पहिये और 7 घोड़े बनाये गये है, लेकिन आज 7 घोड़ों मे से एक ही घोडा बचा हुआ है।

इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो सिंह हाथियों पर होते हुए दिखाये गये है जो रक्षात्मक मुद्रा में नजर आते है। इसके प्रवेश द्वार पर नाट्य मंदिर है जहा नर्तकियां भगवान को अर्पण करने के लिए नृत्य किया करती थी।

कोणार्क सूर्य मंदिर तीन मंडपों में बना हुआ है और इनमें से दो मंडप ढह चुके हैं, लेकिन तीसरे मंडप में जहाँ मूर्ति थी, वहा अंग्रेज़ों ने भारतीय स्वतंत्रता के पहले ही रेत और पत्थर भरवा कर सभी द्वारों को बंद कर दिया क्यों कि यह मन्दिर और क्षतिग्रस्त ना हो पाए। इस मन्दिर में भगवान सूर्य देव की तीन प्रतिमाएं हैं, जो एक ही पत्थर से बनी हुई है।

सूर्य मंदिर में भगवान सूर्य देव की तीन प्रतिमाएं:

पहली - बाल्यावस्था - उदित सूर्य: 8 फीट
दूसरी - युवावस्था - मध्याह्न सूर्य: 9.5 फीट
तीसरी - प्रौढ़ावस्था - अस्त सूर्य: 3.5 फीट


कोणार्क सूर्य मंदिर का पौराणिक महत्व :

पुराणों के अनुसार श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को उनके श्राप से कोढ़ रोग हो गया था और इस श्राप से बचने के लिए ऋषी कटक ने उनको सूरज भगवान की पूजा करने के लिए कहा था, उस वक्त साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के तट पर बारह वर्षों तक कड़ी तपस्या की और उन्हें सूर्य देव प्रसन्न हुए थे।

इसलिए साम्ब ने सूर्य भगवान का मंदिर निर्माण करने का निश्चय किया। चंद्रभागा नदी में स्नान करते समय उन्हें सूर्यदेव की एक मूर्ति मिली जो देवशिल्पी श्री विश्वकर्मा ने बनायी थी और यह मूर्ति सूर्यदेव के शरीर के भाग से ही थी। इस मूर्ति को उन्होंने अपने मित्रवन के मंदिर में स्थापित किया तब से इस स्थान को पवित्र माना जाता है।

यह मंदिर सूर्यदेव अर्थात अर्क को समर्पित था, जिन्हें वहा के लोग बिरंचि नारायण कहते थे।

कोणार्क मंदिर की वास्तु-कला

वैसे देखा जाये तो यह मंदिर चंद्रभागा नदी के मुख में बनाया गया है परंतु इसकी जल रेखा दिन ब दिन कम होते हुए नजर आने लगी है। वास्तविक में यह मंदिर एक पवित्र स्थान है। इस मंदिर की उचाई 229 फीट होने की वजह से और 1837 में इस मंदिर पर विमान गिर जाने की वजह से इस मंदिर का थोडा बहुत नुकसान हुआ है।

इस मंदिर में 128 फीट लंबा एक जगमोहन हॉल है और इसकी एक खास बात यह है की, वो हॉल आज भी जैसा के वैसा ही है। आज की स्थिति में इस मंदिर में ओर भी कुछ हॉल है जिसमे नाट्य मंदिर और भोग मंडप है।

इस मंदिर के आसपास एक महादेवी मंदिर और दूसरा वैष्णव समुदाय का यह दो मंदिर पाए गये है। ऐसा माना जाता है की, महादेवी मंदिर यह सूरज भगवान की पत्नी का मंदिर है और वो कोणार्क मंदिर के प्रवेश द्वार के दक्षिण में है।

दूसरा मंदिर वैष्णव समुदाय का जिसमे बलराम, वराह और त्रिविक्रम की मूर्तियाँ स्थापित की गयी है और इसलिए इस मंदिर को वैष्णव मंदिर भी कहा जाता है लेकिन इन दोनों ही मंदिर में की मूर्तियाँ गायब है।


कोणार्क मंदिर के चुम्बकीय पत्थर

ऐसा माना जाता है कई कथाओं के अनुसार, इस मंदिर के शिखर पर एक चुम्बकीय पत्थर लगा है और इसके प्रभाव से कोणार्क के समुद्र से गुजरने वाले सागर पोत इस ओर खींचे चले जाने की वजह से उन्हें भारी क्षति होती है।

लेकिन अन्य कथा के अनुसार इस पत्थर के कारण पोतों के चुम्बकीय दिशा से निरूपण यंत्र सही दिशा नहीं बताते इसी वजह से अपने पोतों को बचाने के हेतु से नाविक इस चुम्बकीय पत्थर को निकाल कर ले गये थे।

यह पत्थर एक केंद्रीय शिला का काम करता था जो मंदिर की दीवारों के सभी पत्थर संतुलन में थे, लेकिन इस पत्थर को हटने का कारण मंदिर की सभी दीवारों का संतुलन खो गया और वे गिर गई। लेकिन ऐसी किसी भी चुम्बकीय केन्द्रीय पत्थर का अस्तित्व कोई ऐतिहासिक घटना में उपलब्ध नही है।

Follow us on

✅ INSTAGRAM |   / templeinindia  

✅ TWITTER |   / templesinindia2  

✅ FACEBOOK PAGE |   / ancienttemplesindia  

✅ LINKEDIN |   / vedic-india-888b90223  

✅ TO VIEW LATEST VIDEO 👉 https://telegram.me/Bhaktikishakti.com


#konark #konarktemple #konarkmandir #konarksuryamandir

show more

Share/Embed