भाद्राजून की ऐतिहासिक छतरियां ( जालोर )Historical Chattris of Bhadrajun (Jalore)
Jungsher Mohammad Jungsher Mohammad
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 Published On Oct 31, 2020

वर्षों से उपेक्षित पड़ी है भाद्राजून की पुरातन धरोहर
रणजीतसिंह राठौड़
भाद्राजून. महाभारत कालीन सुभद्रा अर्जुन नगरपुरी के नाम से विख्याात इस कस्बे की छतरियां उपेक्षा का शिकार हो रही है।कालान्तर में इस नगर का नाम अपभ्रंश होकर भाद्राजून हो गया, लेकिन धरोहर बचाने के कोई आगे नहीं आया।यह कस्बा राजस्थान के ऐतिहासिक तथा प्राचीन स्थलों में से एक है।
बुजुर्ग बताते हैं कि भाद्राजून स्थित छतरियां पर्यटन के लिहाज से जिले का अहम हिस्सा है। राज्य के पुरातत्व विभाग ने इन ऐतिहासिक व कलात्मक छतरियों को विभाग की धरोहर के रूप में घोषित कर रखा है।
इनका संरक्षण एवंसार-संभाल करने की जिम्मेदारी विभाग की है, लेकिन यहां कोई काम नहीं हो रहा। जालोर जिला मुख्यालय से जोधपुर मार्ग पर भाद्राजून लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित है।यह इतिहास, दुर्ग व महल के कारण राज्य में अपनी एक विशिष्ठ पहचान रखता है। इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की दरकार है, लेकिन विभाग की ओर से कोई खास काम नहीं हो रहा।
धीरे-धीरे वजूद खो रही धरोहर
अभी तक विभाग नेइनके रख-रखाव व सार-संभाल की कोई व्यवस्था नहीं की है।ऐतिहासिक छतरियां पूर्व के राजा व शासकों की थी। उस समय इनकी रख-रखाव का कार्य राजाओं की ओर से ही किया जाता था, लेकिन वर्तमान में इनके आसपास कचरा फैला हुआ है।साथ ही समय के साथ धीरे-धीरे यह छतरियां खंडहर होती जा रही है।मुख्य मार्ग के निकट होने के कारण यह लोगों के लिए आर्कषक का केन्द्र तो है, लेकिन उपेक्षित पड़ी यह धरोहर धीरे-धीरे अपना वजूद खो रही है।
बढ़ सकता है पर्यटन व्यवसाय
कस्बा मुख्य मार्ग पर होने से यहां पर्यटन व्यवसाय बढ़ सकता है। अक्सर भाद्राजून किले को देखने के लिए देसी-विदेशी पर्यटक आते हैं। कस्बे के हेरिटेज होटल में उनका ठहराव भी होता है, लेकिन छतरियों की ओर ध्यान नहीं जाता। पर्यटन विभाग की ओर से कुछ प्रयास किए जाए तो यह स्थल भी पर्यटकों की नजर में आ सकता है। छतरियों की उचित सार संभाल करने पर भाद्राजून को पर्यटक केन्द्र के रूप में भी विकसित किया जा सकता है।
पुरातत्व विभाग के अधीन है छतरियां
जिला प्रशासन की ओर से भाद्राजून गांव में तालाब किनारे बनी ऐतिहासिक, कलात्मक एवं पुरातात्विक छतरियों की धरोहर को पुरातत्व विभाग की ओर से रक्षित किए जाने के लिए विभाग के निदेशक को 22 जनवरी, 2015 को अद्र्धशासकीय पत्र लिखा था। इस पर राज्य के कला, साहित्य, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के प्रमुख शासन सचिव ने 4 अगस्त, 2015 को यह छतरियां पुरातत्व विभाग के अधीन किए जाने की विधिवत अधिसूचना जारी की थी।

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