दैनिक यज्ञ (हवन की सम्पूर्ण विधि) | अग्निहोत्र || Agnihotra ||
स्वस्ति पथ ।। Swasti Path स्वस्ति पथ ।। Swasti Path
8.47K subscribers
288,268 views
8.7K

 Published On Jul 25, 2020

आचमन मंत्र
ओ३म् अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ।। 1 ।।
(दाएं हाथ में जल लेकर पीना है)
ओ३म् अमृतापिधानमसि स्वाहा ।। 2 ।।
(दाएं हाथ में जल लेकर पीना है)
ओं सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा ।। 3 ।।
(दाएं हाथ में जल लेकर पीना है)

अंगस्पर्श मंत्र
(हाथ धोकर नीचे लिखे मन्त्रों से बाएं हाथ में अंजली में जल भर कर अंग स्पर्श करें )
ओ३म् वाड्म आस्येऽस्तु ।। (इस मंत्र से मुख)
ओ३म् नसोर्मे प्राणोस्तु ।। (इससे नासिका)
ओ३म् अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु ।। (इससे आँखों)
ओ३म् कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु ।। (इससे कानों)
ओ३म् बाह्नोर्मे बलमस्तु ।। इससे दोनों भुजाओं)
ओ३म् ऊर्वोर्मे ओजोस्तु ।। (इससे जंघाओं पर)
ओ३म् अरिष्टानि मेऽडानि तनूस्तन्वा मे सह सन्तु ।।
(इससे सारे शरीर पर जल छिड़कें)

अग्नि प्रदीप्त करने का मन्त्र
ओ३म् भूर्वुवः स्वः । (इस मंत्र से दीपक जलावें)
इसके पश्चात निम्न मन्त्र को पढ़कर दीपक से कर्पूर को प्रज्वलित कर अग्न्याधान करें।
ओ३म् भूर्भुवः स्वद्र्यौरिव भूम्ना पृथिवी व वरिम्णा। तस्यास्ते पृथिवी देवयजनि पृष्ठे
ऽग्निमन्नादमन्नाद्यायादधे ।
ओ३म् । उद्बुध्यास्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते संसृजे थामयं च। अस्मिन् सधस्थे
ऽध्युत्त्रस्मिन् विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ।
इस मंत्र से यज्ञकुण्ड में समिधाओं का चयन करके अग्नि को अच्छी तरह प्रदीप्त करें।

समिधा डालने का मंत्र
जब अग्नि सम्यक् प्रकार से जलने लगे, तब आठ आठ अंगुल की
तीन समिधाएं घृत में डुबोकर इस मंत्र से पहली समिधा अग्नि में स्थापन करें -
ओ३म् अयन्त इध्म आत्मा जातवेदस्तेनेध्यस्व वर्द्धस्व चेद्ध वर्द्धय चास्मान् प्रजया
पशुभिब्र्रह्मवर्चसेनान्नाद्येन समेधय स्वाहा। इदमग्नये जातवेदसे-इदं न मम।।
ओ३म् समिधाग्निं दुवस्यत घृतैर्बोध्यतातिथिम् । आस्मिन् हव्या जुहोतन
स्वाहा। ओ३म् सुसमिद्धाय शोचिषे घृतं तीव्रं जुहोतन । अग्नये जातवेदसे स्वाहा।
इदमग्नये जातवेदसे इदन्न मम ।
(इन दोनों मंत्रों से दूसरी समिधा रखनी है।)
ओं तं त्वा समिदिरडिरों घृतेन वर्द्धयामसि। वृहच्छोचा यविष्ठ्य स्वाहा ।
इदमग्नयेऽडि. रसे इदं न मम । (इन मंत्र से तीसरी समिधा)

पंच घृताहुति
निम्न मन्त्र को पढ़कर तप्त घी की पाँच बार आहुति प्रदान करें ।
ओ३म् अयन्त इध्म आत्मा जातवेदस्तेनेध्यस्व वर्धस्व चेद्ध वर्धय चास्मान्
प्रजया पशुभिब्र्रह्म वर्चसेनान्नाद्येन समेधय स्वाहा । इदमग्नये जातवेद से इदन्न मम ।

जल सिंचन मन्त्र
निम्न मन्त्रों से हाथ में जल लेकर वेदी के चारों ओर जल डालें -
ओ३म् अदितेऽनुमन्यस्व ।।
(इस मंत्र से पूर्व दिशा में दक्षिण से उत्तर की ओर)
ओ३म् अनुमतेऽनुमन्यस्व।।
(इस मंत्र से पश्चिम दिशा में दक्षिण से उत्तर की ओर)
ओ३म् सरस्वत्यनुमन्यस्व ।।
(इस मंत्र से उत्तर दिशा में पश्चिम से पूर्व की ओर)
ओ३म् देव सवितः प्रसुव यज्ञं प्रसुव यज्ञपतिं भगाय दिव्यो गन्धर्वः केतन्नः पुनातु
वाचस्पतिर्वाचं नः स्वदतु ।।
(इस मंत्र से पूर्व से दक्षिण - पश्चिम - उत्तर होते हुए पूर्व दिशा तक
चारों ओर जल का सिंचन करें ।

आधार वाज्याहुति मन्त्र:
ओ३म् अग्नये स्वाहा। इदमग्नये - इदं न मम।।
(इस मंत्र से पूर्व उत्तर दिशा में घी की आहुति)
ओ३म् सोमाय स्वाहा। इदं सोमाय - इदं न मम ।।
(इस मंत्र से दक्षिण दिशा में)
निम्न मंत्रों से यज्ञकुण्ड के मध्य में घी की आहुति दें ।
ओ३म् प्रजापतये स्वाहा। इदं प्रजापतये - इदं न मम।।
ओ३म् इन्द्राय स्वाहा । इदमिन्द्राय - इदं न मम ।।

व्याहृत्याहुति मन्त्राः
ओं भूरग्नये स्वाहा।। इदमग्नये इदं न मम ।।
ओं भुवर्वायवे स्वाहा ।। इदं वायवे इदं न मम ।।
ओं स्वरादित्याय स्वाहा ।। इदमादित्याय इदं न मम ।।
ओं भूर्भुवः स्वरग्निवाय्वादित्येभ्यः स्वाहा ।।
इदमग्निवाय्वादित्येभ्यः इदं न मम ।।

प्रजापत्याहुतिमन्त्राः
प्रजापति को मौन आहुति -
ओं प्रजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये इदं न मम ।

स्विष्टकृताहुतिमन्त्राः
ओं यदस्य कर्मणो अत्यरीरिचं यद्वा न्यूनमिहाकरम् ।
अग्निष्टत्—स्विष्टकृत्—विद्यात्—सर्वं स्विष्टं सुहुतं करोतु मे । अग्नये
स्विष्टकृते सुहुतहुते सर्वप्रायश्चित्तहुतीनां कामानांसमर्धयित्रे सर्वान्नः
कामान्तसमर्द्धय स्वाहा। इदमग्नये स्विष्टकृते इदं न मम ।

प्रातःकालीन आहुतियाँ
निम्न मंत्रों से घी एवं सामग्री से आहुँतियाँ देनी है ।
ओ३म् सूर्यो ज्योतिज्र्योतिः सूर्यः स्वाहा।
ओ३म् सूर्यो वर्चो ज्योतिवर्चः स्वाहा।
ओ३म् ज्योतिः सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा।
ओ३म् सजूर्देवेन सवित्रा सजूरुषसेन्द्रवत्या जुषाणः सूर्यो वेतु स्वाहा ।।

सांयकालीन आहुतियाँ
ओ३म् अग्निज्र्योति ज्र्योतिरग्निः स्वाहा।
ओ३म् अग्निर्वर्चो
अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा।
ओ३म् अग्निज्र्योतिः ज्र्योतिरग्निः स्वाहा।
(यह आहुति मौन हाकर देनी है)
ओ३म् सजूर्देवेन सवित्रा सर्जूरात्रयेन्द्रवत्या। जुषाणो अग्निर्वेतु स्वाहा।।

प्रातः तथा सायंकाल की आहुतियाँ
ओं भूरग्नये प्राणाय स्वाहा। इदमग्नये प्राणाय इदं न मम ।
ओं भुवर्वायवेऽपानाय स्वाहा । इदं वायवेऽपानाय इदन्न मम ।
ओं स्वरादित्याय व्यानाय स्वाहा। इदमादित्याय व्यानाय इदन्न मम ।
ओं भूर्भुवः स्वरग्निवाय्वादितेभ्यः प्राणापानव्यानेभ्यः स्वाहा ।
इदमग्न्विाय्वादितेभ्यः प्राणापाणव्यानेभ्यः इदन्न मम ।
ओं आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरों स्वाहा ।।
ओं यां मेधां देवगणाः पितरश्चोपासते तया मामद्य मेध्याग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा ।।
ओं विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव। यद् भद्रं तन्नासुव स्वाहा।।
ओं अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठान्ते नम उक्तिं विधेम स्वाहा ।।
तत्पश्चात् तीन गायत्री मन्त्रों की आहुतियाँ देकर निम्न मन्त्र को तीन बार पढ़कर
दैनिक यज्ञ की पूर्ण आहुति करें ।
ओं सर्वं वै पूर्णं स्वाहा ।।
ओं सर्वं वै पूर्णं स्वाहा ।।
ओं सर्वं वै पूर्णं स्वाहा ।।
#Yagya, #Havan, #Agnihotra

show more

Share/Embed