Alankar | Alankar 1 to 5 | अलंकार | अलंकारों का रियाज़ मेरे साथ हारमोनियम पर | classical music
SANGEET KIRAN SANGEET KIRAN
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 Published On Jul 19, 2020

संगीत अलंकार अभ्यास,अलंकारों का रियाज़ मेरे साथ हारमोनियम पर,classical music,Alankar,Alankar 1 to 5,संगीत के प्रारंभिक अलंकार,alankar for beginners,Basic Alankar,खरज का रियाज़,अलंकार पहचानना,alankar kise kahate hain,sangeet kiran,अलंकारों का रियाज़,alankar riyaz,अलंकार में आरोही-अवरोही,अलंकार आरोह अवरोह,संगीत में अलंकार कितने प्रकार के होते है,संगीत में अलंकार के प्रकार,संगीत में अलंकार की परिभाषा,संगीत के अलंकार,संगीत अलंकार,संगीत में अलंकार क्या है
अलंकार-भारतीय शास्त्रीय संगीत
संगीत में वह शब्द जिसका कोई निश्चित रूप हो और जिसकी कोमलता या तीव्रता अथवा उतार-चढ़ाव आदि का, सुनते ही, सहज में अनुमान हो सके, स्वर कहलाता है। स्वर को सीखने के लिए सरगम सीखना बहुत जरूरी होता है
अलंकार-भारतीय शास्त्रीय संगीत
कुछ विशेष नियमो से बँधे हुए स्वर-समुदाय को अलंकार या पल्टा कहते है। किसी विशेष वर्ण-समुदाय अथवा क्रमानुसार तथा नियमबद्ध स्वर समुदायों को अलंकार कहते है। अलंकार को पल्टा भी कहकर पुकारते है। इस में एक क्रम रहता है जो स्वरों को चार वर्णो में अर्थात स्थायी, आरोही, अवरोही या संचारि में विभाजन करता है। अलंकार के आरोह तथा अवरोह ऐसे दो विभाग होते है तथा जो क्रम एक अलंकार के आरोह में होता है उसका उल्टा क्रम उसके अवरोह में होना आवश्यक है, उदाहरण के लिए नीचे कुछ अलंकारो अथवा पल्टो को दिया गया है।
अलंकार में आरोही-अवरोही क्रम होते हैं।
शुद्ध स्वर अलंकार 6से 12तक
1.अलंकार
• आरोही - सा, रे, गा, मा, पा, धा, नि, सां।
• अवरोही - सां, नि, धा, पा, मा, गा, रे, सा।
2. अलंकार
• आरोही - सा सा, रे रे, गा गा, मा मा, पा पा, धा धा, नि नि, सां सां।
• अवरोही - सां सां, नि नि, धा धा, पा पा,मा मा, गा गा, रे रे, सा सा।
3. अलंकार
• आरोही - सा रे गा, रे गा मा, गा मा पा, मा पा धा, पा धा नि, धा नि सां।
• अवरोही - सां नि धा, नि धा पा, धा पा मा, पा मा गा, मा गा रे, गा रे सा।
संगीत अलंकार
संगीत रत्नाकर[क] के अनुसार, नियमित वर्ण समूह को अलंकार कहते हैं। सरल शब्दों में, स्वरों के नियमानुसार चलन को अलंकार कहते हैं। अलंकारों को बहुत से लोग पलटा भी कहते हैं। अलंकार, संगीत के अभ्यास का प्रथम चरण होतें हैं। शास्त्रीय गायन तथा वादन के क्षेत्र मे विद्यार्थियों को सर्वप्रथम अलंकारो का अभ्यास करवाया जाता है। वाद्य के विद्यार्थियों को अलंकार के अभ्यास से वाद्य पर विभिन्न प्रकार से उंगलियां घुमाने की योग्यता हासिल होती है वहीं गायन क्षेत्र से जुड़े लोगो को इस के नियमित अभ्यास से कंठ मार्जन मे विशेष सहायता मिलती है।
अलंकारों में कई कड़ियाँ होती है, जो आपस में एक दूसरे से जुड़ी रहतीं हैं। अलंकारों की रचना में- प्रत्येक अलंकार में मध्य सप्तक के (सा) से तार सप्तक के (सां) तक आरोही वर्ण होता है जैसे- "सारेग, रेगम, गमप, मपध, पधनी, धनीसां" व तार सप्तक के (सां) से मध्य सप्तक के (सा) तक अवरोही वर्ण होता है जैसे- "सांनिध, निधप, धपम, पमग, मगरे, गरेसा"। एक अन्य उदाहरण मे आरोही व अवरोही वर्ण साथ मे देखें………
आरोह -सारेगम, रेगमप, गमपध, मपधनि, पधनिसां। अवरोह -सांनिधप, निधपम, धपमग, पमगरे, मगरेसा।
संगीत के अलंकार
स्वरों की नियमानुसार चलन को अलंकार कहते हैं. अलंकार में कई कड़ियाँ होती हैं जो आपस में एक दूसरे से जुड़ी होती है. प्रत्येक अलंकार में मध्य सा से तार सा तक आरोही वर्ण और तार सा के मध्य सा तक अवरोही वर्ण हुआ करता है. 'संगीत दर्पण' के अनुसार इसकी परिभाषा इस प्रकार दी गई है:
'विशिष्ट वर्ण सन्दभम् लंकार प्रचक्षते'
अर्थात नियमित वर्ण-समूह को अलंकार कहते हैं. अलंकार का अवरोह, आरोह का ठीक उल्टा होता है, जैसे:-
आरोह - सारेग, रेगम, गमप, पधनी, धनिसा.
अवरोह - सानिध, निधप, धपम, पमग, मगरे, गरेसा.
इसी प्रकार अनेक अलंकारों की रचना हो सकती है. अलंकार को पलटा भी कहते हैं.
संगीत में अलंकार क्या है
सरल शब्दों में, स्वरों के नियमानुसार चलन को अलंकार कहते हैं। अलंकारों को बहुत से लोग पलटा भी कहते हैं। अलंकार, संगीत के अभ्यास का प्रथम चरण होतें हैं। शास्त्रीय गायन तथा वादन के क्षेत्र मे विद्यार्थियों को सर्वप्रथम अलंकारो का अभ्यास करवाया जाता है।

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