Chanakya stressing on National Pride with Captions
Sanjay Jha Sanjay Jha
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 Published On Jan 22, 2013

आचार्य चाणक्य अपनी दूर-दृष्टि से देख रहे थे कि भारत पूर्णतः शक्तिशाली नही है| समाज विश्रंखल व्यक्तिनिष्ठ है| इन अवगुणों के कारण देश दिन-प्रतिदिन दुर्बल हो रहा है| देश कि आत्मा के साथ अपनी आत्मा को समरस करने के कारण इस दुर्बलता की वेदना को अनुभव किया|


आचार्य चाणक्य जीवनपर्यंत स्वयं पद और प्रतिष्ठा से निर्लिप्त रह कर राष्ट्र को एक सुद्रढ़ आधार पर खडा करते रहे| आचार्य चाणक्य ने उस समय के अनेक गणराज्यों एवं जातियों के परस्पर वैरभाव को मिटाकर उनको एकसूत्रता का व्यावहारिक तथा चिरस्थायी पाठ भी पढ़ाया|

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