Published On May 9, 2020
#बैसी (जागर)
पहाड़ में गाँव की #देवीमाता के मन्दिर में 22 दिन तक चलने वाली एक साधना जिसमें उस व्यक्ति #भगतजी को 22 दिन तक मन्दिर में रहना होता है और एक टाईम खाना होता है जितने टाईम शौच जाना होता है उतने टाईम नहाना होता है और शरीर को #साधना करनी होती है घरवालो से कुछ भी मतलब यानी लेना देना और ना नाम लेने की अनुमति होती है भगतजी करके बोला जाता है मन्दिर में सुबह शाम को आरती होती है जिसमें भगतजी अपना साधना करते हैं 21वे दिन नहान होता है जिसमें #दुर्गामन्दिर में गाँव वाले एकत्रित होकर #देवीध्वज #निशाण #ढोलदमुआरणसिंग सहित भगत लोगो #शिवालय की तरफ #शुभयात्रा निकालते हैं जिसमें महिलाएं अपना #पारंपरिक #पोशाक #पिछौड़ा और जेवर पहनकर# यात्रा की शोभा बढ़ाते हैं #शिवमंदिर में जाने के पश्चात नहान कार्यक्रम शुरू होता है उसके पश्चात मंदिर में जागर लगती है जागर समाप्त होने के बाद सब को #कारामथ (लकडी़ का जला राख) सर पर टीका की तरह लगता है और फिर वापस दुर्गा मंदिर की तरफ प्रस्थान होता है देवी मंदिर पहुंचने के पश्चात वहां पर भंडारा होता है और रात को फिर जाकर शुरू होती है जिसमें #चारोंदिशाओं में दिशा देने की परंपरा है के पश्चात अगले दिन 22 वा दिन बहुत बड़ा भंडारा होता है जिसमें आसपास के गांव के सभी लोग #भंडारे में आते हैं और #भंडारा ग्रहण करते हैं