Published On Sep 6, 2024
आदिवासियों के sentiments को समझने में आजाद भारत की सरकारें अंग्रेजों से कहीं ज्यादा असंवेदनशील रही है। आज उसी को समझने का प्रयास करते हैं। जब झारखंड अलग नहीं था, उस समय बिहार की सरकार झारखंड क्षेत्र के आदिवासियों की सभ्यता और संस्कृति को बिलकुल नहीं समझती थी। आदिवासियों की संस्कृतियों को शासन की प्रक्रिया में शामिल नहीं करने के कारण आदिवासियों का गैर आदिवासी शासन यानी दिकु व्यवस्था से लगातार आक्रोश का संबंध होता गया। उसी कड़ी में एक गोलीकांड 8 सितंबर 1980 को हुआ था, जिसे गुआ गोलीकांड के रूप में याद किया जाता है। यह आज के झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिला अन्तर्गत उड़ीसा से सटा खनिज संसाधनों से भरा हुआ इलाका है। यह गोलीकांड झारखंड आंदोलन के इतिहास में सबसे क्रूर नरसंहारों में से एक था।उस समय झारखंड के सिंहभूम जिले में 'जंगल काटो आंदोलन' अपने चरम पर था। आंदोलन का यह नाम सरकार और प्रशासन ने दिया था।कई बार हमारी बातों को, संस्कृतियों को नहीं समझने के कारण सरकारें अपने मुताबिक एक राय आदिवासियों के विरुद्ध बना लेती है, और उसी का प्रचार-प्रसार करती है। जंगल काटो आंदोलन या बाद में इसे शोर्ट में जंगल आंदोलन कहा गया की सच्चाई को भी आज समझते हुए आगे बढ़ेंगे
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