HIMALAYAN HIGHWAYS| Center Of Faith And Culture Maa Nanda Temple Kurud Village| माँ नंदा का मायका |
Himalayan Highways Himalayan Highways
10.2K subscribers
37,894 views
914

 Published On Nov 26, 2021

नमस्कार हिमालयन हाइवेज के एक और खास एपिसोड में आपका स्वागत है। उत्तराखण्ड की लोकसंस्कृति और जीवनशैली का अद्भुत और आलौकिक सफर आज पहुंचा है कुलदेवी माँ नन्दा के मायके कुरुड़ गांव। उत्तराखण्ड की धार्मिक आस्था के सबसे बड़े केंद्र मा नन्दा के मायके कुरुड़ गांव मे जहां एक और देवताओं का आशीष है वहीं दूसरी तरफ पहाड़ों की चुनौतियोसे हर पल जूझने वाली जीवनशैली भी नजर आती है। हर साल मां नन्दा को ससुराल विदा करते हुए भावुक होना और मायके वापस आती नन्दा का भव्य स्वागत करना कुरुड़ की जीवनशैली का अहम हिस्सा है। आस्था श्रद्धा और पारम्परिक जीवनशैली के साथ आइये शुरू करते है आज का यह खास सफर इष्टदेवी मां नन्दा के मायके से...
उत्तराखण्ड की लोकसंस्कृति में धार्मिक आस्था की जड़ें काफी गहरी नजर आती है और सुदूर हिमालयी क्षेत्रों में हर साल होने वाली नन्दा जात यात्रा आस्था की इन जड़ों को ओर मजबूत कर जाती है। हिमालयी क्षेत्रों में मां नन्दा को कुलदेवी कहा जाता है और हर साल स्थानीय लोग अपनी कुलदेवी को कैलाश के लिए विदा करते है। सदियों से चली आ रहीं परम्परा को उत्तराखण्ड का समाज आज भी पूरी निष्ठा से निभा रहा है। चमोली जनपद के घाट विकासखण्ड स्थित कुरुड़ गांव में माँ नन्दा का भव्य मंदिर स्थित है और यही से हर साल मां नन्दा की कैलाश यात्रा शुरू होती है। कुरुड़ गांव में निवास करने वाले गौड़ ब्राह्मणों को माता के पूजन का अधिकार है। माँ नन्दा के कुरुड़ गांव में इतिहास काफी विस्तृत है और स्थानीय निवासी इतिहास को विस्तार से बयां करते है.
वर्तमान समय में मां नन्दा का भव्य मंदिर कुरुड़ गांव में स्थापित किया गया है। स्थानीय पुजारी हर दिन मन्दिर में मौजूद रहकर माता के पूजन से सम्बंधित रीति-रिवाजों को सम्पन्न करवाते है. माँ नन्दा के पुजारी गौड़ ब्राह्मणों को लेकर भी इतिहास रहा है और माना जाता है कि दक्षिण भारत से गौड़ ब्राह्मणों को माता के पूजन के लिए बुलाया गया था। कुरुड़ गांव की जीवनशैली भी अन्य पहाड़ी गांवों के समान नजर आती है। कृषि और पशुपालन यहां शुरू से ही लोगों की जीवनशैली का हिस्सा रहा है। कुरुड़ गांव तक सड़क निर्माण होने के बाद यहां लोगों की आवाजाही बढ़ी है साथ ही दैनिक जरूरत का सामान भी गांव में उपलब्ध हो जाता है। सड़क निर्माण से पहले कुरुड़ गांव में स्थानीय निवासियों को जरूरत का सामान लेने के लिए कई किलोमीटर का पैदल सफर तय करना होता था. मां नन्दा के मायके में नन्दा को हमेशा बेटी जैसा प्यार दिया जाता है और आज भी इस परम्परा को कुरुड़ गांव में पूरी शिद्दत के साथ निभाया जाता है। कुलदेवी के मायके में महिलाएं हमेशा ही नन्दा के मायके आने का इंतजार करती है। वक्त के साथ धार्मिक आस्था का दायरा बढा है लेकिन कुरुड़ गांव में पलायन भी नजर आता है। बुनियादी सुविधाओं का अभाव हिमालयी क्षेत्रों की सबसे बड़ी समस्या रही है । रोजगार और अन्य कारणों से गांव से बाहर रह रहे लोग आज भी अपनी जड़ों से जुड़े है साथ ही गांव में आयोजित समारोहों ओर धार्मिक कार्यक्रमों में हमेशा शामिल होते है।
कुरुड़ गांव में उत्तराखण्ड की लोकसंस्कृति और लोकगीतों का अथाह भंडार है। माँ नन्दा के जागर ओर लोकगीत कुरुड़ गांव की हवा में हर वक्त सुनाई देते है। नन्दा की विदाई के भावुक पल हो या फिर मायके लौटती नन्दा के स्वागत का उल्लास, पारम्परिक लोकगीत इन पलो को कभी न भूलने वाला अहसास दिला जाते है। माँ नन्दा के मायके कुरुड़ के सफर में आज इतना ही। आपको हमारा यह एपिसोड कैसा लगा कृपया कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखें साथ ही हमारे चैनल को सब्सक्राइब भी करें |
हिमालयन हाइवेज | उत्तराखंड | चमोली | नंदप्रयाग | घाट | कुरुड़ गाँव | राज राजेश्वरी मंदिर कुरुड़ | माँ नंदा का मायका | बधाण की नंदा | दशोली की नंदा | उत्तराखंड लोकजात यात्रा | उत्तराखंड में जातयात्रा | कुरुड़ गाँव का इतिहास | माता के पुजारी | गौड़ ब्राह्मण | माँ नंदा के पौराणिक जागर | माँ भगवती के जागर | नंदा की कैलाश विदाई | शिव कैलाश | जात यात्रा की शुरुआत | नंदा के पौराणिक विदाई गीत |

show more

Share/Embed