History Of Kera Mandir ।। मां भगवती केरा की सम्पूर्ण कथा ।। Kera Mela 2024।।
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 Published On May 8, 2024

Kera Mela is most famous and historical fair of West Singhbhum district of Jharkhand Kera Mela is organized in Mata Kera Mandir and Mata Paudi Mandir in Chakradharpur of West Singhbhum district In this fair devotees walk in burning pile of coal fire in bare foot to show their devotion towards Mata Kera Many people from ...



Video Credits:-
Director🎬:- Bablu Pradhan
Camera🎥:- Manoj Pradhan,Kamal Pradhan
Editing By💯:- Kamal Pradhan
Story By📰:- Bablu Pradhan
References 📝:- Kera Raj Parivar

केरा इतिहास का सबसे गौरव पूर्ण पल - माँ भगवती का वास और उनका मंदिर का निर्माण!

आज से लगभग 250 वर्ष पूर्व केरा गांव में राजा साहेब ठाकुर लोकनाथ सिंहदेव ने माँ केरा का मंदिर निर्माण करवाया था। धार्मिक मान्यता के अनुसार केरा मां की कुल सात बहनें हैं। इनमें कंसरा मां ,रंकिणी माँ ,आर्किषीणी मां ,तारणी मां ,दिउड़ी मां ,एवं पाऊड़़ी मां है। सभी मंदिर से श्रेष्ठ रूप में माँ केरा इस क्षेत्र में मानी जाती हैं।

केरा मां के मंदिर की स्थापना की एक कथा है। लगभग 300 वर्ष पूर्व एक अनजान संयासी केरा गांव पहुँचे। इन्होंने गांव के बगल में नदी किनारे बच वृक्ष पर अपना निवास स्थल बनाया था। उनके हाथ में प्रतिमा थी। संयासी के अनुसार प्रतिमा मां की थी और वह प्रतिमा जिस स्थान पर बस जाएगी, पुनः उसे उठाया नहीं जा सका। संयासी ने वर्षों मां की जप-तप साधना करते हुए उसी बर वृक्ष के नीचे अपना जीवन त्याग दिया था। उन्होंने मां को एक झोपड़ी में घेर कर छोड़ दिया था। कथन अनुसार वो प्रतिमा क़रीब 500 साल पुराना है जो वो काउरीकामाख्या से उस सन्यासी के पूर्वज वहाँ से सिद्ध कर के लाए थे।

संयासी की मृत्यु के दूसरे दिन राजा साहेब लोकनाथ सिंहदेव को मां का स्वप्न हुआ। मां ने स्वप्न में कहा- मैं तुम्हारे राज्य की रक्षा हेतु तुम्हारी नदी के किनारे आ बसी हूँ और तुम मेरा दर्शन कर मेरी उपासना करो तथा झोपड़ी (मंदिर) की रक्षा करो।

राजा दूसरे दिन उस स्थान पर पैदल चलकर पोहूचे उसने देखा कि जैसा उन्होंने स्वप्न में देखा था वैसी ही देवी की एक प्रतिमा वहां वाट पेड मैं विराजमान थी। राजा के आदेश पर तुरंत मंदिर बनाये गये। मां की पूजा-पाठ होने के बाद प्रतिवर्ष नृत्य 12 अप्रैल की रात गरिया भर के बाद केरा राजदरबार में होता था। यह आयोजन भी राजा साहेब लोकनाथ सिंहदेव द्वारा किया जाता था और एप्रिल 9-14 तक नीति नियम के तहत माँ भगवती की पूजा अर्चना होती है।

एक वर्ष 12 अप्रैल की रात नृत्य बुढ़ा-बुढ़ी ताड़ हो रहा था, तो राजा साहेब ने देखा एक अपूर्व सुंदरी युवती खड़ी हो कर नृत्य देख रही है। राजा साहेब उस स्त्री के बैठने का आग्रह करने के लिए उसके पास गये, पर वह सुंदरी रूप सामने से हटती गयी और धीरे-धीरे मंदिर की ओर जाने लगी। यह देख राजा साहेब भी पीछे-पीछे चल दिया। राजा साहेब जब मंदिर सामने पहुँचे तब वह सुंदरी अदृश्य हो गयी। इसके साथ ही आकाशवाणी हुई - राजा, तुमने मुझे बुढ़ा-बुढ़ी ताल देखने नहीं दिया और मुझे नाराज किया। उसी समय राजा ने संकल्प किया कि आज के बाद प्रतिवर्ष 13 अपै्रल को मंदिर के सामने छऊ नृत्य होगा। तभी से प्रत्येक 13 अप्रैल को यहां छऊ नृत्य होता है। हर वर्ष अप्रैल माह में केरा मंदिर में छऊ नृत्य होता है। इस मंदिर में एक अप्रैल से माँ केरा की पूजा प्रारम्भ होती है।

14 अप्रैल की सुबह छह बजे से कालिका घट की शरूआत होती है। मंदिर से 150 मीटर दूर डाहणीडूबा से सात फीट गड़ा खोदा जाता है। वहां से पानी घटवाली के द्वारा मंदिर में लाया जाता है। इस घट को 150 मीटर की दूरी तय करने में चार घंटे लगते हैं। इस घट के मंदिर में पहुँचने के बाद मंदिर का दरवाजा बंद कर दिया जाता है। इस दौरान मां केरा के भक्तों द्वारा बलि दी जाती है।

लोग नंगे पैर आग पर चलते हैं। काँटों मैं सोते है। चार दिनों के उपवास के बाद भक्त मां से अपनी कामना पूरी करने की प्रार्थना करते हैं। प्रत्येक 13 अप्रैल की रात्रि मंदिर के सामने छऊ नृत्य होता है।

यह मंदिर एक पर्यटन स्थल का रूप ले चुका है।प्रतिदिन दूर-दराज से सैंकड़ो भक्तों का आवागमन होता हैं।









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