Published On May 7, 2021
जानापाव जैसा नाम वैसा ही मार्ग। पहाड़ी पर बना मंदिर, ऊबड़-खाबड़
रास्ते, नाले, घनी झाडियां और जंगली जानवरों का डर, यह सब पार करने के
बाद पहुंचते हैं जानापाव। जानापाव पहुंचते ही आप इन सारी समस्याओं को भूल
जाते थे, क्योंकि यहां आपके सामने होता है शानदार नजारा और भगवान परशुराम
की जन्म स्थली से जुड़े राज। इंदौर से करीब 28 किमी दूर जानापाव भगवान
परशुराम की जन्मस्थली है।
जानें, भगवान परशुराम की जन्म स्थली और उसने जुड़ी कथा…
महर्षि जमदग्रि की तपोभूमि तथा भगवान परशुराम की जन्मस्थली जानापाव,
इंदौर की महू तहसील के हासलपुर गांव में स्थित है।
मान्यता है कि जानापाव में जन्म के बाद भगवान परशुराम शिक्षा ग्रहण
करने कैलाश पर्वत चले गए थे।
जहां भगवान शंकर ने उन्हें शस्त्र-शास्त्र का ज्ञान दिया था।
जानपाव पहुंचने के दो रास्ते हैं। एक रास्ता पहाड़ाें के बीच से होकर
जाता है, जबकि दूसरा पक्का मार्ग है।
कुंड से निकलती है ये नदियां
जानापाव पहाड़ी से साढ़े सात नदियां निकली हैं। इनमें कुछ यमुना व कुछ
नर्मदा में मिलती हैं।
यहां से चंबल, गंभीर, अंगरेड़ व सुमरिया नदियां व साढ़े तीन नदियां
बिरम, चोरल, कारम व नेकेड़ेश्वरी निकलती हैं।
ये नदियां करीब 740 किमी बहकर अंत में यमुनाजी में तथा साढ़े तीन नदिया
नर्मदा में समाती हैं।
भगवान परशुराम के जन्म के संबंध में प्रचलित कथाएं
भगवान परशुराम के पिता भृगुवंशी ऋषि जमदग्रि और माता राजा प्रसेनजीत की
पुत्री रेणुका थीं। ऋषि जमदग्रि बहुत तपस्वी और ओजस्वी थे। ऋषि जमदग्रि
और रेणुका के पांच पुत्र रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्ववानस और परशुराम
हुए। एक बार रेणुका स्नान के लिए नदी किनारे गईं। संयोग से वहीं पर राजा
चित्ररथ भी स्नान करने आया था। राजा को देख रेणुका उसपर मोहित हो गईं।
ऋषि ने योगबल से पत्नी के इस आचरण को जान लिया। उन्होंने अपने पुत्रों को
मां का सिर काटने का आदेश दिया। किंतु परशुराम के अलावा सभी ने ऐसा करने
से मना कर दिया। परशुराम ने पिता के आदेश पर मां का सिर काट दिया।
क्रोधित पिता ने आज्ञा का पालन न करने पर अन्य पुत्रों को चेतना शून्य
होने का श्राप दिया, जबकि परशुराम को वर मांगने को कहा।
तब परशुराम ने तीन वरदान मांगे...
पहला, माता को फिर से जीवन देने और माता को मृत्यु की पूरी घटना याद न
रहने का वर मांगा।
दूसरा, अपने चारों चेतना शून्य भाइयों की चेतना फिर से लौटाने का वरदान मांगा।
तीसरा, वरदान स्वयं के लिए मांगा, जिसके अनुसार उनकी किसी भी शत्रु से
या युद्ध में पराजय न हो और उनको लंबी आयु प्राप्त हो।
पिता जमदग्रि अपने पुत्र परशुराम के ऐसे वरदानों को सुनकर गदगद हो गए
और उनकी कामना पूर्ण होने का आशीर्वाद दिया।
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