Published On Dec 7, 2022
भगवान शिव के 15 अवतारों में एक नाम भैरव का भी आता है और उसी भैरव रूप को समर्पित यह भैरवगढ़ी मंदिर लैंसडाउन से लगभग 17 किमी की दूरी पर और गुमखाल से 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कीर्तिखाल की पहाड़ी पर मौजूद है। कालनाथ भैरव को सभी चीजें काली पंसद होती है और इसीलिये भैरव के लिए मंडुआ के आटे का प्रसाद बनाया जाता है जिसे रोट कहते हैं। भैरवगढ़ी स्थित भैरव को को गढ़वाल मंडल का रक्षक माना जाता है। भैरव के साधक और पुजारी आज भी भैरवगढ़ी चोटी पर जाकर सिद्धि प्राप्त करते हैं।
52 गढ़ों वाले गढ़वाल में एक गढ़ यह भैरवगढ़ भी है जिसका वास्तविक नाम लंगूरगढ़ है। लांगूल पर्वत पर मौजूद होने के कारण इसका नाम लंगूरगढ़ पड़ा। सन् 1791 तक यह लंगूरगढ़ बहुत शक्तिशाली माना जाता था। इस गढ़ को जीतने के लिए दो वर्षों तक गोरखाओं ने घेराबंदी की….28 दिनों तक हमले किये, किंतु गोरखा पराजित हुए और लंगूरगढ़ से वापस चले गए। अजेय होने के कारण इसका नाम अजयगढ़ भी है।
इन गोरखों में से एक थापा नाम के गोरखा ने भैरव की शक्ति से प्रभावित होकर वहां 40 किलो का ताम्रपत्र चढ़ाया था। भैरवगढ़ी में स्थित ये मंदिर भैरव की गुमटी पर बना है, जिसके बाहर बायीं ओर शक्तिकुंड है। समुद्रतल से 2750 मीटर की ऊंचाई पर यह धाम स्थित है और यदि मौसम साफ हो तो यहाँ से हिमालय दर्शन भी होते हैं।
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