श्रीमद् भागवत कथा/कृष्ण जन्म कथा -श्री राजेंद्र शास्त्री जी महाराज
Rajendra Shastri Rajendra Shastri
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 Published On Oct 7, 2024

श्रीमद् भागवत कथा श्री राजेंद्र शास्त्री जी महाराज |

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द्वापर युग में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की आधी रात को मथुरा के कारागार में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था. श्रीकृष्ण ने बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में जन्म लिया था. अष्टमी तिथि को रात्रिकाल अवतार लेने का प्रमुख कारण उनका चंद्रवंशी होना बताया जाता है. श्रीकृष्ण चंद्रवंशी, चंद्रदेव उनके पूर्वज और बुध चंद्रमा के पुत्र हैं. इसी कारण चंद्रवंश में पुत्रवत जन्म लेने के लिए कृष्ण ने बुधवार का दिन चुना. भगवान कृष्ण ने माता देवकी के आठवें संतान के रूप में जन्म लिया था. कृष्णजी का जन्म मथुरा में मामा कंस के कारागार में हुआ था. माता देवकी राजा कंस की बहन थी. इसीलिए भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है.
कंस को सत्ता का लालच था. उसने अपने पिता राजा उग्रसेन की राजगद्दी छीनकर उन्हें जेल में बंद कर दिया था और स्वंय को मथुरा का राजा घोषित कर दिया था. राजा कंस अपनी बहन देवकी से बहुत प्रेम करता था. उन्होंने अपनी बहन का विवाह वासुदेव से कराया था, लेकिन जब वह देवकी को विदा कर रहा था. तभी एक आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र कंस की मौत का कारण बनेगा. यह सुनकर कंस डर गया, उसने तुरंत अपनी बहन और उनके पति वासुदेव को जेल में बंद कर दिया. उनके आसपास सैनिकों की कड़ी पहरेदारी लगा दी. कंस अपनी मौत के डर से देवकी और वासुदेव की 7 संतानों को मार चुका था.
भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र दिन बुधवार की अंधेरी रात में भगवान कृष्ण ने देवकी के आठवें संतान के रूप में जन्म लिया. श्रीकृष्ण के जन्म लेते ही कोठरी प्रकाशमय हो गया. तब तक आकाशवाणी हुई कि विष्णुजी ने कृष्ण जी के अवतार में देवकी के कोख में जन्म लिया है. उन्हें गोकुल में बाबा नंद के पास छोड़ आएं और उनके घर एक कन्या जन्मी है, उसे मथुरा ला कर कंस को सौंप दें. भगवान विष्णु के आदेश से वासुदेव जी भगवान कृष्ण को सूप में अपने सिर पर रखकर नंद जी के घर की ओर चल दिए. भगवान विष्णु की माया से सभी पहरेदार सो गए, कारागार के दरवाजे खुल गए.
आकाशवाणी सुनते ही वासुदेव के हाथों की हथकड़ी खुल गई. वासुदेव जी ने सूप में बाल गोपाल को रखकर सिर पर रख लिया और गोकुल की ओर चल पड़े. वासुदेव भगवान कृष्ण को लेकर नंद जी के यहां सकुशल पहुंच गए और वहां से उनकी नवजात कन्या को लेकर वापस आ गए. जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म की सूचना मिली. वह तत्काल कारागार में आया और उस कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटकना चाहा, लेकिन वह कन्या उसके हाथ से निकल कर आसमान में चली गई. फिर कन्या ने कहा- ‘हे मूर्ख कंस! तूझे मारने वाला जन्म ले चुका है और वह वृंदावन पहुंच गया है. वह कन्या कोई और नहीं, स्वयं योग माया थीं.
बाबा नंद और उनकी पत्नी मां यशोदा ने कृष्णजी का पालन-पोषण किया. राजा कंस ने कृष्णजी का पता लगाकर उन्हें मारने की खूब कोशिश की. लेकिन कंस की सारी कोशिशें विफल हुई और कृष्णजी को कोई मार नहीं सका. अंत में श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया. राजा उग्रसेन को फिर मथुरा की राजगद्दी सौंप दी. इस तरह से जन्माष्टमी की व्रत कथा पूरी हुई.
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