पुत्र दायिनी माँ अनुसूया देवी चमत्कारी मंदिर | माँ सती अनुसूया | देव भूमि उत्तराखंड | 4K | दर्शन🙏
Tilak Tilak
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 Published On Premiered Oct 31, 2023

जय माता दी. आप सभी भक्तों का हमारे कार्यक्रम दर्शन में हार्दिक अभिनंदन. भक्तों, हमारे देश भारत में अनेकों दिव्य और चमत्कारिक मंदिर हैं जहां पर श्रद्धालु जनों की कामनाएं पूर्ण होती हैं और आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के दर्शन कराएंगे जहां पर निसंतान स्त्री पुरुषों की मनोकामना पूर्ण होती है, जहां पर निसंतान स्त्री पुरुषों को मनवांछित पुत्र पुत्री प्राप्त होती हैं, तो आइये दर्शन करते हैं “मां सती अनुसूया मंदिर” के.

उत्तराखंड में चमोली गढ़वाल के मंडल गांव के पास ही स्थित “अनसूया माता मंदिर” हिमालय पर्वत श्रृंखला की गोद में बसा हुआ यह दिव्य और प्राचीन मंदिर मनोकामना सिद्धि के लिए अति प्रसिद्ध है. चमोली से जब रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा करते हैं तो एक पड़ाव मंडल गाँव आता है वहीं से “अनुसूया माता मंदिर” की दूरी तय करनी होती है.

मुख्य सड़क मार्ग से लगभग 6 किलोमीटर पैदल यात्रा कर अनसूया माता मंदिर पहुंचा जाता है, यह 6 किलोमीटर का पैदल मार्ग बहुत ही सुंदर शांत और सकारात्मक ऊर्जा से भरा हुआ है, मंदिर पहुंचने से पहले ही एक प्राचीन शिलालेख मिलता है जिसमें रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा का वर्णन है यह शिलालेख 600 ई का है. यहां से मंदिर की दूरी लगभग 1 किलोमीटर है मार्ग में एक गणेश जी का भी छोटा सा मंदिर है जिसमे भगवन गणेश की प्रतिमा पाषण पर उकेरी गयी है. मंदिर पहुंचकर जैसे ही हम मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते हैं एक अद्भुत शांति और दिव्य ऊर्जा से ओत प्रोत वातावरण को अनुभव कर पाते हैं यही है “माता अनसूया मंदिर” पीछे की ओर पुराना प्राचीन मंदिर है और आगे नए मंदिर का निर्माण कराया गया है.
मंदिर के गर्भग्रह में मां अनुसूया की बहुत ही सुंदर प्रतिमा विराजमान है जिनके दर्शन कर भक्तगण अपनी मनोकामनाओ की सिद्धि की माँ से कामना करते हैं. भक्तों मां अनुसूया कर्दम ऋषि की पुत्री और अत्रि ऋषि की धर्मपत्नी थी. विवाह के बाद माँ अनुसुइया इसी स्थान पर निवास करतीं थीं. मां अनुसूया के बारे में कहा जाता है यह पति परायण पतिव्रता स्त्री थी.
मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार – माँ अनुसुइया के पतिव्रता की कहानी ब्रह्मलोक शिवलोक और बैकुंठ तक गाई जाती थी. इसीलिए एक बार महालक्ष्मी, मा सरस्वती, और मां शक्ति तीनों ने मां अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा करने का विचार किया और अपने-अपने पति देव श्री ब्रह्मा जी श्री विष्णु जी और श्री महादेव जी से मां अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा करने को कहा, तीनों ही देव अत्रि मुनि के आश्रम परीक्षा लेने के लिए पहुंच गए, तीनों ने मां अनुसूया को प्रणाम किया और भोजन कराने की प्रार्थना की. मां अनुसूया ने तीनों देव जो ऋषि रूप में आए थे उनको भोजन कराना स्वीकार किया परंतु तीनों देवों ने एक शर्त रख दी कि यदि आप निर्वस्त्र होकर भोजन कराएंगी तो ही हम भोजन करेंगे अन्यथा नहीं, माँ धर्म संकट में पड़ गई वह सोचने लगी कि यह कैसे संभव हो सकता है की एक पतिव्रता स्त्री निर्वस्त्र किसी पर पुरुष के सामने चली जाए, उन्होंने अपने पतिदेव अत्रि मुनि का ध्यान किया और अचानक उनके मन में एक युक्ति आई उन्होंने त्रिदेवों जो ऋषि रूप में थे उनसे कहा मैं आपकी शर्त स्वीकार करती हूं परंतु मेरी भी एक शर्त है आपको मेरे बालक बनकर मेरी गोद में आना होगा तो ही मैं आपको भोजन करा सकती हूं त्रिदेवों ने स्वीकार कर लिया और त्रिदेव मां अनुसूया के पुत्र बनकर अत्रि मुनि के आश्रम में बड़े ही लालन पालन के साथ रहने लगे.
जब बहुत दिन बीत गए और त्रिदेव अपने-अपने लोक नहीं पहुंचे तो तीनों ही महा शक्तियां बहुत चिंतित हुई और उन्होंने मां अनुसूया के आश्रम पर आकर देखा तब उन्हें समझते देर न लगी की मां अनुसूया ने उन्हें अपना पुत्र बनाकर आश्रम में ही रख लिया है अब तीनों देवियों को अपनी भूल की अनुभूति हुई और उन्होंने माँ अनुसूया से क्षमा मांगी और अपने-अपने पतिदेव को ले जाने की प्रार्थना की, मां अनुसूया तीनों देवियों पर प्रसन्न हुई और उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महादेव को उनके वास्तविक रूप में लाकर वहां से ले जाने की आज्ञा दी.

भक्तों तभी से मां अनुसूया को यह वरदान मिला कि वह किसी की भी पुत्र कामना की पूर्ति अपनी इच्छा से कर सकती हैं इस प्रकार से आज भी वो स्त्री पुरुष जो संतान प्राप्ति के लिए निराश हैं मां अनुसूया के दरबार में आते हैं और संतान प्राप्ति की कामना करते हैं मां अनुसूया यहां पर आने वाले सभी श्रद्धालु जनों की मनोकामना पूर्ण करती हैं और जिस भी श्रद्धालु की कामना पूर्ण होती है वह यहां मां अनुसूया के दरबार में एक घंटी बांध देता है ऐसे हजारों लाखों लोगों की मनोकामना मां अनुसूया की कृपा से पूर्ण हो चुकी हैं, मंदिर परिसर में बंधी हुई है घंटियां इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है. परिसर में बहुत से देवी देवताओं की प्राचीन पाषण की प्रतिमाएं हैं.. यहाँ पीछे की ओर एक शिवलिंग एवं नंदी की जो प्रतिमा भी विराजमान है... यहाँ एक प्रतिमा में त्रिदेवों के बाल रूप को बहुत ही सुन्दरता के साथ दर्शाया गया है.

श्रेय:
लेखक - याचना अवस्थी

Disclaimer: यहाँ मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहाँ यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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