Published On Dec 3, 2022
डेरा सचखंड बल्लां: दुनिया भर के चमारों को इकट्ठा करने में लगा संगठन
-दलितों की एक जाति चमार जिसे अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, ने देश-दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। चाहे राजनीतिक आंदोलन हो, सामाजिक आंदोलन या फिर धर्म का आंदोलन, यह जाति केंद्र में रही है। इसकी खासियत यह है कि यह दलित समाज की सभी जातियों को साथ लेकर चलती रही है। बाबासाहेब का अनुसरण करते हुए जब बौद्ध धर्म को आगे बढ़ाना था, यही जाति सबसे आगे रही। तो वहीं दलित समाज में जन्मे संतों के संत, संत शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज के आंदोलन की कमान भी इसी समाज ने संभाली और रविदासिया धर्म की शुरुआत की। और इस नए धार्मिक और सामाजिक आंदोलन का केंद्र बना डेरा सच्चखंड बल्लां।
पंजाब के जालंधर में स्थित डेरा सच्चखंड बल्लां वर्तमान में रविदासिया धर्म का सबसे बड़ा केंद्र है। लेकिन डेरा सच्चखंड बल्लां महज एक धार्मिक केंद्र ही नहीं हैं, बल्कि सामाजिक आंदोलन भी कर रहा है, और देश एवं समाज को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहा है। इसके स्कूल चलते हैं, अस्पताल चलता है, 24 घंटे का लंगर चलता है। और इसके दरवाजे हर किसी के लिए हर वक्त खुले रहते हैं।
डेरा सच्चखंड बल्लां का यह प्रांगण अपने भीतर सतगुरु रविदास के विचारों को आगे बढाने वाले संतों की यादों को भी समेटे है। और इसकी परंपरा शुरू होती है 108 संत श्री सरवण दास से, जिनके नाम पर डेरा बल्लां बना है। संतों की परंपरा और उनकी यादों को भी डेरा सच्चखंड बल्लां में सहेज कर रखा गया है। यहां एक सत्संग भवन भी है, जहां हर रविवार को हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। तमाम मौकों पर मौजूदा गद्दीनशीन श्री 108 संत निरंजन दास जी महाराज श्रद्धालुओं को अमृतबाणी का प्रचार करते हैं।
यहां 24 घंटे का लंगर चलता है और सेवादार के रूप में रविदासिया समाज के लोग तन, मन, धन से इसके साथ जुड़े है।वाराणसी में सतगुरु रविदास के जन्म स्थान सिरगोवर्धनपुर में रविदास जयंती के मौके पर हर साल दुनिया भर से रविदासिया धर्म के लोग जुटते हैं। इसका संचालन भी जालंधर के डेरा सच्चखंड बल्लां से ही होता है। इस दौरान यहां देश के दिग्गज नेताओं का जमावड़ा लगता है, जो रविदासिया समाज की बढ़ती ताकत की कहानी कहती है। जालंधर से विशेष ट्रेन बेगमपुरा एक्सप्रेस चलती है, जिसमें वर्तमान गद्दीनशीन श्री 108 संत निरंजन दास जी महाराज के साथ दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आए एनआरआई भी संत रविदास जन्मस्थान वाराणसी पहुंचते हैं।
वाराणसी में सतगुरु रविदास जन्मस्थान को भव्य बनाने में मान्यवर कांशीराम से लेकर बहन मायावती तक ने अपना योगदान दिया था। तो यहां पूर्व राष्ट्रपति के.आर. नारायणन भी मत्था टेकने पहुंचे। हालांकि इस बीच एक सवाल यह भी उठता है कि रविदासिया धर्म को धर्म के रूप में मान्यता देने की मांग आखिर क्यों हो रही है?
@CHAMARBULLETINTV